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________________ 116 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-५२ इस सम्बन्धमें श्री हरिभद्रसूरिजी सबसे नीचे भरणी आदि नक्षत्र, तत्पश्चात् सबसे ऊँचे स्वाति आदि नक्षत्र जणाते हैं। श्री गंधहस्तीजी महाराज प्रथम मंगलग्रह सूर्यके नीचे होनेका बताते हैं / (50-51) (प्र० गा० सं० 12) ज्योतिषी निकायका स्थान, तथा ज्योतिश्चक्रकी ऊँचाई प्रमाणका यन्त्र / समभूतला पृथ्वीसे | 790 योजन ऊँचा-तारामंडल से 10 योजन ऊँचा सूर्य 800 योजन ॐवे-सूर्य से 80 ,, ,, चन्द्र 880 योजन ऊँचे-चन्द्र से 4 योजन ऊँचा नक्षत्रपरिमंडल ,, ,, नक्षत्रमंडल से 4 ,, ,, बुधग्रहादि ,, ,, बुधादिग्रहों से 3,, ,, शुक्रग्रहादि ,, ,,-शुक्रादिग्रहों से 3 ,, ,, बृहस्पत्यादि ,, ,, बृहस्पत्यादिग्रहोंसे 3 योजन ऊँचा . मंगलग्रहादि 897 ,, ,, मंगलादिग्रहोंसे 3 ,, ,, शनैश्चर 900 , ,,-शनैश्चरादिग्रह - , आए हैं। कुल 110 योजन पूर्ण हुए / अवतरण-चरज्योतिषीके विमान, मनुष्यक्षेत्रमें जम्बूद्वीपके मेरुपर्वतसे कितने दूर रहे ? तथा स्थिर ज्योतिश्चक्र मनुष्यलोकके बाहर अलोकाकाशकी कितनी अबाधा पर स्थिर है ? इसका वर्णन करते हैं एक्कारसजोयणसय, इगवीसिकारसाहिया कमसो / मेरु अलोगा बाहं, जोइसचक्कं चरइ ठाइ / / 52 // गाथार्थ-ग्यारहसौ इक्कीस योजन तथा ग्यारहसौ ग्यारह योजन अनुक्रमसे मेरु तथा अलोककी अबाधा पर ज्योतिश्चक्र घूमता है और स्थिर रहता है। // 52 // विशेषार्थ-पहले कह गये हैं कि अढाईद्वीपमें चरज्योतिषी हैं और तत्पश्चात् तारा विमानाकार जैसा होनेसे और उस विमानकी तेजस्वी प्रभासे, दूरसे देखनेवालेको तारावत् आभास होता होनेसे वैसा कहनेकी प्रथा हो गयी हो तो वह सहज है / अधिक कहें तो सोम, मंगल आदि ग्रहोंके नामके आधारसे कहे जाते सोमवार, मंगलवार इत्यादि वार भी प्रसिद्ध हुए हैं /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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