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________________ समभूतलापृथ्वीसे ( यहांसे ) सूर्यादिग्रह कितने दूर है ? गाथा 50-51 [ 115 वहाँसे चार योजन पर बुध, उसके बाद तीन योजन पार करने पर गुरु, फिर तीन योजन पर मंगल और तदनन्तर तीन योजन पर शनिश्चर है / // 50-51 // विशेषार्थ इक्कावनवीं प्रक्षिप्त गाथा द्वारा अन्य आचार्य ऐसा कहते हैं कि रत्नप्रभागत समभूतला पृथ्वीसे सातसौ नब्बे योजन पूर्ण होने पर तुरंत ही कोटानुकोटी ताराओंका मण्डल-प्रस्तर आता है, वहाँसे दस योजन दूर ऊँचा जाने पर (आठसौ योजन पूर्ण होने पर ) वहाँ १३१सूर्येन्द्र आता है। वहाँसे आगे अस्सी योजन दूर जाने पर (880 योजन पूर्ण होने पर ) वहाँ चन्द्र आता है, साथ ही वहाँसे चार योजनकी ऊँचाई पर अट्ठावीस प्रकारका नक्षत्रगण आता है / _इन नक्षत्रोंका जो परिभ्रमण क्रम है, उनमें भरणीनक्षत्र सर्व नक्षत्रोंसे अधःस्थानमें विचरता है, जब कि स्वातिनक्षत्र सर्व नक्षत्रोंसे ऊर्ध्वस्थानमें (ऊपर ) चलता है। मूलनक्षत्र अन्य 11 नक्षत्रों की अपेक्षा सर्व नक्षत्रोंके दक्षिणमें बाह्य मण्डलमें चलता है और अभिजित् नामका नक्षत्र सर्व नक्षत्रोंसे अन्दरके भागमें उत्तरमें बाह्य मण्डलमें चलता है / इन नक्षत्रोंके स्थानसे चार योजन दूर ऊँचा जाने पर ग्रहोंकी संख्यामें मुख्य मुख्य माने जाते ग्रहों में से प्रथम बुधग्रहमंडल आता है, वहाँसे तीन योजन दूर ऊँचा शुक्रग्रहमण्डल है, वहाँसे तीनं योजन दूर बृहस्पति-गुरुग्रहमण्डल है और वहाँसे पुनः तीन योजन ऊँचा १३२मंगलग्रहमण्डल है और वहाँसे तीन योजन ऊँचा १३३शनैश्चरग्रहमंडल आया है। - 131. इतर दर्शनकार प्रथम चन्द्र समझते हैं और फिर सूर्य मानते हैं, इतना ही नहीं लेकिन 'सूर्यनारायण के रुपमें प्रायः बहुतसे अनुष्ठानोंमें उन्हें पूजनीय स्वरूपमें विशेषतः मान्य करते हैं। प्रथम चन्द्र और फिर सूर्य, इस मान्यताके बारेमें आगे-'ज्योतिषी परिशिष्ट में सोचेंगे / ___132. समभूतलापेक्षया मंगलग्रह-प्रमाणांगुलसे युक्त ऐसे 887 योजन अर्थात् चार कोसके योजनके मापसे 35480 योजन ऊँची है, फिर भी उसके अनभ्यासी आजके पाश्चात्य वैज्ञानिक, उस मंगलस्थान पर पहुँचनेके बारेमें बातें करते हैं, इतना ही नहीं, लेकिन मंगलग्रह किस आकारका है ? कैसे रंगका हे ? उस पर क्या क्या वस्तुएँ हैं ? अन्दर क्या क्या थर्या है यह सब हमने देखा ऐसा कहते हैं, साथ ही रोकेट नामके हवाई यान्त्रिक साधनद्वारा मनुष्योंको भेजनेके प्रयास वर्तमानकालमें हो रहे हैं, परंतु हजारों मील दूर पहुँचनेकी कोई संभावना-शक्यता तनिक भी दिखती नहीं है / ... 133. व्यवहारमें बुध, शनैश्चरादि ग्रह होने पर भी जो शनैश्चरका तारा, इत्यादि 'तारा' शब्दसे संबोधित होता है इसका कारण ऐसा प्रतीत होता है कि-ताराबहुल विमानोंमें आए हुए ग्रहविमानका आकार
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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