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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 29 निष्प्रयोजन ही उनका नाश करने को तत्पर रहते हैं। कुछ लोग केवल तमाशा देखने के लिए सांडों, हाथियों, मुर्गो बगैरह को लड़ाते हैं। कुछ साँप आदि को मारने में अपनी बहादूरी समझते हैं तो कुछ साँप आदि को मारना अपना धर्म समझते हैं। इस प्रकार पूरे शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में भगवान् महावीर ने संसार में होने वाली विविध प्रकार की हिंसा के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं एवं उसके परिणाम की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने बताया है कि यह हिंसा ही ग्रन्थ है-परिग्रहरूप है, मोहरूप है, माररूप है, नरकरूप है। खेरदेह-अवेस्ता नामक पारसी धर्मग्रन्थ में पृथ्वी, जल, अग्नि, वनस्पति, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि के साथ किसी प्रकार का अपराध न करने की अर्थात् उनके प्रति घातक व्यवहार ने करने की शिक्षा दी गई है। यही बात मनुस्मृति में दूसरी तरह से कही गई है। उसमें चूल्हे द्वारा अग्नि की हिंसा का, घट द्वारा जल की हिंसा का एवं इसी प्रकार के अन्य साधनों द्वारा अन्य प्रकार की हिंसा का निषेध किया गया है। घट, चूल्हा, चक्की आदि को जीववध का स्थान बताया गया है एवं गृहस्थ के लिए इसके प्रति सावधानी रखने का विधान किया गया है। शस्त्रपरिज्ञा में जो मार्ग बताया गया है वह पराकाष्ठा का मार्ग है। उस पराकाष्ठा के मार्ग पर पहुँचने के लिए अन्य अवान्तर मार्ग भी हैं। इनमें से एक मार्ग है गृहस्थाश्रम का। इसमें भी चढ़ते-उतरते साधन हैं। इन सब में एक बात सर्वाधिक महत्व की है और वह है प्रत्येक प्रकार की मर्यादा का निर्धारण। इसमें भी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ा जाय त्यों-त्यों मर्यादा का क्षेत्र बढ़ाया जाय एवं अन्त में अनासक्त जीवन का अनुभव किया जाय। इसी का नाम अहिंसक जीवनसाधना अथवा आध्यात्मिक शोधन है। अध्यात्म शुद्धि के लिए देह, इन्द्रियाँ, मन तथा अन्य बाह्य पदार्थ साधनरूप हैं। इन साधनों का उपयोग अहिंसकवृत्तिपूर्वक होना चाहिए। इस प्रकार की वृत्ति के लिए संकल्पशुद्धि परमावश्यक है। संकल्प की शुद्धि के बिना सब क्रियाकाण्ड व प्रवृत्तियाँ निरर्थक हैं। प्रवृत्ति भले ही अन्य हो किन्तु होनी चाहिए संकल्पशुद्धिपूर्वक। आध्यात्मिक शुद्धि ही जिनका लक्ष्य है वे केवल भेड़चाल अथवा रूढ़िगत प्रवाह में बँध कर नहीं चल सकते। उनके लिए विवेकयुक्त संकल्पशीलता की महती। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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