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________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 9 संयम में दृढ़ करना, जातिगत अभिमान को दूर करना, भोगों की आसक्ति से दूर रखना, भोजनादि के निमित्त होने वाले आरंभ-समारंभ का त्याग करवाना, छुड़वाना आदि है। ममता तृतीय अध्ययन का नाम सीओसणिज्ज - शीतोष्णीय है। इसके चार उद्देशक हैं। शीत अर्थात् शीतलता अथवा सुख एवं उष्ण अर्थात् परिताप अथवा दुःख। प्रस्तुत अध्ययन में इन दोनों के त्याग का उपदेश है। अध्ययन के प्रारम्भ में ही "सीओसिणच्चाई" (शीतोष्णत्यागी) ऐसा शब्द प्रयोग भी उपलब्ध है। इस प्रकार अध्ययन का शीतोष्णीय नाम सार्थक है। निर्युक्तिकार ने चारों उद्देशकों का विषयानुक्रम इस प्रकार बताया है- प्रथम उद्देशक में असंयमी को सुप्त-सोते हुए की कोटि में गिना गया है। दूसरे उद्देशक में बताया है कि इस प्रकार से सुप्त व्यक्ति महान् दुःख का अनुभव करते हैं। तृतीय उद्देशक में कहा गया है कि श्रमण के लिए केवल दुःख सहन करना अर्थात् देहदमन करना ही पर्याप्त नहीं है। उसे चित्तशुद्धि की भी वृद्धि करते रहना चाहिए। चतुर्थ अध्ययन में कषाय-त्याग, पापकर्म - त्याग एवं संयमोत्कर्ष का निरूपण है। यही विषयक्रम वर्तमान में भी उपलब्ध है। चतुर्थ अध्ययन का नाम सम्मत्त - सम्यक्त्व है। इसके चार उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में हिंसा की स्थापना करने वाले अन्य यूथिकों को अनार्य कहा गया है एवं उनसे प्रश्न किया गया है कि उन्हें मन की अनुकूलता सुखरूप प्रतीत होती है अथवा मन की प्रतिकूलता? इसप्रकार इस उद्देशक में भी अहिंसाधर्म का ही प्रतिपादन किया गया है। तृतीय उद्देशक में निर्दोष तप का अर्थात् केवल देहदमन का ही नहीं अपितु चित्तशुद्धिपोषक अक्रोध, अलोभ, क्षमा, संतोष आदि गुणों की वृद्धि करने वाले तप का भी निरूपण है। चतुर्थ उद्देशक में सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र एवं सम्यक्तप की प्राप्ति के लिए यत्न करने का उपदेश है। इसप्रकार यह अध्ययन सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए प्ररेणा देने वाला है। इसमें अनेक स्थानों पर “सम्मत्तदसिणो, सम्मं एवं ति" आदि वाक्यों में सम्मत्त - सम्यक्त्व शब्द का साक्षात् निर्देश भी है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन का सम्यक्त्व नाम सार्थक है। विषयानुक्रम की दृष्टि से भी निर्युक्तिकार व सूत्रकार में साम्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004256
Book TitleAng Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2002
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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