SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिचय कृति स्वयं कृतिकार का परिचय देती है। सुगन्ध से ही सुमन की पहचान बनती है। प्रियरंजनाश्रीजी मासा. माता 000000 जन्म स्थान जन्म 31.08.1967 भादवा सुदी 11 / नाम राजकुमारी श्रीमती सोनीदेवी पिता श्री बंशीलालजी कटारिया बिलाड़ा (राज.) दीक्षा 31.05.1985 दीक्षा स्थान : बाड़मेर दीक्षा दाता प.पू.आ. श्री जिनकान्तिसागरजी म.सा. गुरुवर्या : प.पू. सुलोचनाश्रीजी म.सा. प.पू. सूलोचनाश्रीजी म.सा. की विदुषी शिष्या साध्वी प्रियरंजनाश्रीजी अपने कुछ विशिष्ट गुणों के कारण एक अलग आभा मण्डल रखती हैं। वे श्रुत संयम की साधना में अप्रमत भाव से संलग्न है। गुरूवर्याश्री के सानिध्य में विनय, विवेक, विद्या की त्रिविधि आराधना में सल्लीन है। सहज-स्नेहिल, सेवाशील, मधुरभाषिणी, व्युत्पन्न प्रतिभा की धनी है। परमात्मा बनने यह अध्ययन कृति उनके ज्ञान की गंभीरता, विषय को आत्मसात की कला करने की दक्षता एवं भावों की अभिव्यक्ति देने वाला नपा तुला प्रांजल शब्द कौशल प्रशंसनीय ही नहीं मनोमुग्धकारी भी है। रुचि लेखन से भी अध्ययन, चिंतन, मनन एवं ध्यान में अभिरूचि। साहित्य लेखन : सफलता के मोती, दिव्य सुलोचना दर्शन, पार्श्वमणि देववंदन विधि, आओ!प्रभु प्रार्थना करो। गहूल्यांजलि, तपांजलि, जीवन रूपान्तरण की बून्दें, भगवान् तेरी आराधना, परमात्मा बनने की कला विचरण क्षेत्र : राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ आदि! only Jain Education International www.jainelibrary.org DrintArationHIRO0704OEX700
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy