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________________ परमात्मा बनने की कला दुष्कृत गरे ही ठीक हैं, ऐसा मेरे हृदय में स्थापित हो गया है, इसलिए हे अरिंहत परमात्मा! हे सिद्ध भगवान्! आपके समक्ष में इन पापों और दुष्कृत्यों की निन्दा करता हूँ। मेरे ये सब पाप मिथ्या हों! मिथ्या हों! मिथ्या हों! हे प्रभु! उन भूलों के प्रति बार-बार मिच्छामि दुक्कडम्! मिच्छामि दुक्कडम्! मिच्छामि दुक्क्डम्! प्रार्थना हे विश्ववत्सल विभू! - आपके प्रभाव से मैंने जो दुष्कृत-गर्दा की हैं, उसमें आपके प्रभाव से मेरे अन्तर में सच्चा भाव प्रकट हो। हे विश्ववालेश्वर नाथ! मैंने जिन पापों की निन्दा गर्दा की है, वे पाप फिर से जीवन में कभी न करूं, ऐसा अकरण नियम मुझे आपके प्रभाव से मिले। ये दुष्कृत गर्दा और पाप अकरण नियम मुझे बहुत अच्छे लगे, इसलिए हे अरिहंत भगवान्! हे कल्याणमित्र गुरुदेवों! आपकी हितशिक्षा मुझे बार-बार प्राप्त हो। आप दोनों का संयोग भी मुझे बार-बार प्राप्त हो। आपका संयोग पाने के लिए मेरी ये प्रार्थना सचमुच सु-प्रार्थना (फलदायी) हो। सु-प्रार्थना के प्रति मुझे अत्यंत बहुमानभाव है। हे प्रभु! ऐसी सु-प्रार्थना द्वारा मुझे पुण्यानुबंधी पुण्य स्वरूप मोक्षबीज की प्राप्ति हो। हे नाथ! जब आपका मिलन हो तब हे तारणहार जहाज अरिहंत परमात्मा! हे पतित-पावन कल्याण मित्र गुरुदेव! ___ सच्चे अंतःकरण से की गई मेरी प्रार्थना के प्रभाव से एक ऐसा धन्य पल जरूर आयेगा, जब दोनों का साक्षात् संयोग मुझे प्राप्त होगा। उसके लिए अभी से संकल्प करता हूँ कि आप जब मुझे मिलें, तब मैं आपकी सेवा के योग्य बनूँ, मैं आपकी आज्ञा पालन करने योग्य बनूँ, मैं आपकी आज्ञा स्वीकार करने योग्य बनूँ, मैं आपकी आज्ञा का निरतिचार रूप से पालन करने योग्य बनूं। मेरी यह अन्तर की इच्छा आपके प्रभाव से परिपूर्ण हो परमात्मा! Jain Education International ForPor 1740 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004255
Book TitleParmatma Banne ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyranjanashreeji
PublisherParshwamani Tirth
Publication Year2000
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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