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________________ २८४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन ओर बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने के लिए रात्रिभोजनत्याग को भी महाव्रतों के साथ कहा जाने लगा । परन्तु महाव्रतों की पाँच संख्या में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। वैदिक और बौद्ध संस्कृति में भी इन पाँच महाव्रतों के प्रति समान आदरभाव दिखलाई पड़ता है।' ___इन पाँच नैतिक व्रतों का जितना आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्व है उतना ही व्यावहारिक दृष्टि से भी महत्त्व है । अहिंसा, सत्य और अचौर्य ये तीन नैतिक महाव्रत तो स्पष्टरूप से व्यवहार में आवश्यक हैं। ब्रह्मचर्य और लोभत्यागरूप अपरिग्रह व्रत भी व्यभिचार रोकने एवं विश्वबन्धुत्व की भावना को प्रसारित करने के लिये आवश्यक हैं। लोक में व्यसनी तथा कंजस को हीन दृष्टि से देखा भी जाता है । यद्यपि जितनी सूक्ष्मता से प्रकृत ग्रन्थ में नैतिक व्रतों का पालन करने का विधान किया गया है उतनी सूक्ष्मता से सामान्य व्यवहार में अपेक्षित नहीं है और न संभव ही है तथापि इनके व्यावहारिक महत्त्व का अपलाप नहीं किया जा सकता है । ग्रन्थ में इन महाव्रतों का जो उपदेश दिया गया है वह साधुओं के लिए है। गृहस्थ के लिए तो इन व्रतों का अंशतः पालन करना ही आवश्यक है जैसा कि पिछले प्रकरण में बतलाया जा चुका है। ___ इस तरह अहिंसादि इन पाँच महाव्रतों में साधु के सभी नैतिक गुणों का समावेश किया गया है। गृहस्थ एवं साधु का सम्पूर्ण आचार इन्हीं की परिधि में घूमता है। प्रवचनमाताएँ-गुप्ति और समिति अशुभात्मक प्रवृत्ति को रोकना और सदाचाररूप शुभात्मक प्रवृत्ति में सावधानीपूर्वक प्रवृत्त होना महाव्रतों की रक्षा एवं १. अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमा :। -पा० यो० २. ३०. बौद्धों के पंचशील के लिए देखिए-भा० द० ब०, पृ० १५६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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