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________________ ॐ मोक्षप्रापक विविध अन्तःक्रियाएँ : स्वरूप, अधिकारी, योग्यता @ ४४५ ४ का वन्ध किया जाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। क्षायिक सम्यक्त्व एवं तीर्थंकर नामकर्म के कारण भविष्य में निश्चित ही मनुष्य-भव में अन्तःक्रिया करने और मोक्ष प्राप्त करने की। छठे वर्ग से आठवें वर्ग तक भगवान महावीर के धर्म-शासन के अन्तकृत् साधक-साधिकाओं का वर्णन है। छठे वर्ग में १६ अध्ययन हैं, जिनमें मंकाई, किंकम्म, मोग्गरपाणी, काश्यप, क्षेपक, धृतिधर, कैलाश, हरिचन्दन, बारत्तक, सुदर्शन, पूर्णभद्र, सुमनभद्र, सुप्रतिष्ठ, मेघ; ये १४ तो सामान्य गृहस्थ थे। १५वाँ अतिमुक्तककुमार पोलासपुर के राजा विजय एवं रानी श्रीदेवी का आत्मज था। १६वाँ अलक्ष नामक राजा था। मोग्गरपाणी और अतिमुक्तककुमार के सिवाय शेष अध्ययन में वर्णित अन्तकृत् साधकों ने सम्यग्ज्ञानादि चतुष्टय की साधना की तथा तीव्र तपःसाधना एवं संलेखना-संथारा के साथ अन्तःक्रिया की। अर्जुनमालाकार यक्षाविष्ट होकर भारी-भरकम मुद्गर घुमाता हुआ प्रतिदिन ६ पुरुष और एक स्त्री की हत्या करने लगा। छह महीने में १,१४१ व्यक्तियों की हत्या कर डाली। अन्तःक्रिया-योग्य मनुष्य-जीवन पाकर भी अर्जुन ने जीवन का पूर्वार्द्ध पापकर्मों में बिताया, लेकिन एक दिन सुदर्शन श्रमणोपासक के निमित्त से उसका यक्षावेश दूर हुआ, शान्त और स्वस्थ होकर वह भगवान महावीर के दर्शनार्थ पहुँचा। श्रद्धापूर्वक वन्दन, प्रवचन-श्रवण तथा अन्त में संसार से विरक्त होकर मुनि दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेते ही आजीवन छट्ठ-छ? तप करने का संकल्प लिया। पारणे के दिन राजगृह जाता, पर वहाँ के नागरिकों ने भूतपूर्व हत्यारे अर्जुन के रूप में उन्हें तरह-तरह से उपसर्ग दिये। क्षमाशील अर्जुन मुनि ने समभाव से उन सब कष्टों को सहन किया, समभाव से यथालाभ संतोष किया। फलतः छह महीने में ही पूर्वबद्ध समस्तं कर्मों का क्षय करके वह अन्तःक्रियापूर्वक मुक्त हुए। ___ बालमुनि अतिमुक्तककुमार बाल्यवय में ही विरक्त होकर दीक्षा लेने के लिए उद्यत हुए। माता-पिता के समक्ष अपनी भावना व्यक्त की। माता ने कहा-"पुत्र ! तू अभी बालक है, क्या जानता है तू धर्म को ?' अतिमुक्तक ने विलक्षण बुद्धिपूर्वक उत्तर दिया-“माँ ! मैं जिसे जानता हूँ, उसे नहीं जानता और जिसे नहीं जानता, उसे जानता हूँ।' बालक की ऐसी विरोधी बातें सुनकर माँ ने पूछा-“इसका रहस्य समझाओ।" इस पर अतिमुक्तक ने कहा- मैं यह जानता हूँ कि जो जन्मा है, वह एक दिन अवश्य मरेगा, किन्तु यह नहीं जानता कि वह कब, कहाँ और कैसे मरेगा? तथा मैं यह नहीं जानता कि किन कर्मों से, कौन जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों में उत्पन्न होगा, परन्तु यह अवश्य जानता हूँ कि मनुष्य १. बारसंगी, सोलसवासा परियाओ, सेसं जहा गोयमम्स, जाव सेत्तुंज्जे सिद्धे। __-चतुर्थ वर्ग, अ. २ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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