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________________ * ३९० , कर्मविज्ञान : भाग ८ ॐ दिया। उस समय भयंकर वेदना होते हुए भी समाधिस्थ रहे। अद्भुत तितिक्षा के कारण मुनि को केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्त हो गया।' उपसर्ग के समय निर्भय होकर देहोत्सर्ग करना समाधिमरण है ___ यथाविष्ट अर्जुनमाली के आतंक के समय राजगृहनगरवासी सुदर्शन श्रमणोपासक ने अपने पर उपसर्ग आया जानकर समाधिपूर्वक सागारी संथारा (आमरण अनशन) कर लिया था और अर्जुनमाली का उपसर्ग दूर हो जाने पर उसे पार लिया था। इसी प्रकार ज्ञानी साधक ऐसे उपसर्गों के आने पर घबराता नहीं, बल्कि निश्चल, निर्भय और निश्चिन्त होकर देहादि के प्रति ममत्व का त्याग करके सागारी अनशन करता है। यदि उस उपसर्ग में ही उसकी मृत्यु हो जाती, तो वह धर्म-पालन करते हुए प्रसन्नता एवं समाधिपूर्वक मृत्यु का आलिंगन करता है। समत्वयोगी मृत्युंजयी गजसुकुमार मुनि महाकाल श्मशान में एक अहोरात्रि की बारहवीं भिक्षुप्रतिमा धारण करके कायोत्सर्ग में स्थित थे। तभी संध्या समय सोमिल ब्राह्मण पूर्वभवबद्ध वैर का बदला लेने हेतु वहाँ आया। मुनि के सिर पर गीली मिट्टी की पाल बाँधी और जलती हई चिता में से धधकते अंगारे लाकर मस्तक पर उँडेल दिये। हड्डी, माँस और रक्त तपने/पकने लगा। असत्य मारणान्तिक वेदना थी। परन्तु इस मनुष्यकृत उपसर्ग को समभाव से, धैर्य और शान्ति से उन्होंने सहन किया। सोचा-देह जल रहा है, मेरी आत्मा तो नहीं जल रही है। मेरे ज्ञान-दर्शन-चारित्र-सुख आदि आत्म-गुणों पर तो कोई भी आँच नहीं आ रही है। जिसने मुझ पर यह उपसर्ग किया है, वह तो मुझे संसार से, जन्म-मरणादि से मुक्त होने, सर्वकर्मक्षय करने में सहायता करने वाला सहायक है, मित्र है। इस प्रकार उनकी आत्म-समाधि बिलकुल खण्डित नहीं हुई और उक्त समाधिमरण के प्रभाव से उसी रात्रि में देह छूटते ही वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाते हैं। मनुष्य द्वारा मनुष्य पर किये गए घोर उपसर्ग के अवसर स्व-धर्मरक्षा के लिए समाधिपूर्वक मृत्यु का स्वीकार करके समभावपूर्वक देह छोड़ने का यह ज्वलन्त उदाहरण है। __इसी प्रकार का एक उदाहरण मानवकृत उपसर्ग के समय शीलरक्षा के लिए समाधिपूर्वक मरण का चन्दनबाला की माता धारणी का है। शतानीक द्वारा १. (क) 'श्रावकधर्म-दर्शन' से भाव ग्रहण, पृ. ६३२-६३३ (ख) देखें-गजसुकुमार मुनि का वृत्तान्त अन्तकृद्दशा में (ग) देखें-ज्ञातासूत्र, अ. ८ में अर्हन्नक श्रेष्ठी का वृत्तान्त (घ) देखें-निशीथचूर्णि एवं त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, प. ७ में स्कन्दककुमार मुनि का वृत्तान्त (ङ) देखें-आवश्यककथा में स्कन्दक मुनि का वृत्तान्त २. (क) देखें-सुदर्शनश्रमणोपासक का वृत्तान्त अन्तकृद्दशांगसूत्र में . (ख) देखें-गजसुकुमार मुनि पर आये हुए मरणान्तक उपसर्ग का वृत्तान्त अन्तकृद्दशांकसूत्र में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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