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________________ ॐ मोक्ष के निकट पहुँचाने वाला उपकारी समाधिमरण * ३६७ 8 बालमरण से मरने वालों का निकृष्ट जीवन और चिन्तन ऐसे वालमरण से मरने वाला व्यक्ति इस जीवन में भी संतप्त, शोकाकुल, उद्विग्न एवं दुःखी रहता है। उसे इस जीवन में भी क्लेश और असन्तोष रहता है और अगले जीवन में भी वह दुःखी एवं शोक-संतप्त होकर भयंकर वेदना भोगता है। उसे एक ही भव के जीवन में अनेक प्रकार की आधि, व्याधि, उपाधि, संकट, क्लेश, विपत्ति के रूप में दुःख आते हैं और जाते हैं। उनमें से कई दुःख साधारण होते हैं, कई भयंकर। बाल्यकाल से लेकर यौवनवय तक अनेक प्रकार की चिन्तायुक्त परिस्थितियाँ, बीमारियाँ, आर्थिक संकट, स्वजन-परिजन वियोग तथा व्यवसाय आदि में कई प्रकार की उलझनें आती हैं, प्रौढ़ावस्था में गंभीर बीमारी, एक्सीडेंट, स्वजन-सम्बन्धी नाना दुःखद एवं व्याकुलकर्ता प्रसंग आते हैं। वृद्धावस्था में भी शरीर में अशक्ति, बीमारी, शिथिलता के सिवाय भी नाना प्रकार की विडम्बनाएँ, वेदनाएँ उसके जीवन की कसौटी करने आती हैं। परन्तु उसे सबसे भयंकर दुःखों को न्यौता देने वाली और अज्ञान के कारण संसार-सागर में डुबाने वाली जो मृत्युरूप कसौटी है; उसका भान नहीं रहता। 'गीता' की भाषा में वह आसुरी शक्ति का धनी होकर अपना जीवन नाना दुःखों, विडम्बनाओं और विपत्तियों में तथा नाना विषयभोगों में आसक्त होकर शरीरमोही बनकर जीवन बिताता है। जिस प्रकार कोई गाड़ीवान समतल सीधे मार्ग को छोड़कर विषममार्ग पर गाड़ी ले जाता है, तो उस गाड़ी की धुरी टूट जाने से वह शोक = पश्चात्ताप करता हुआ दुःखी होता है; उसी प्रकार धर्म और सत्कर्म का मार्ग छोड़कर जो व्यक्ति अधर्म और असत्कर्म (पापाचरण) के मार्ग पर चढ़ जाता है, वह अज्ञानी मृत्यु के मुख में जाते समय अपने पापकर्मों पर तथा उन असत्कर्मों के अगले लोक में मिलने वाले अत्यन्त दारुण फल की कल्पना करके घोर पश्चात्ताप (शोक) करता है। सकाममरण का लक्षण और फल ___ इसके विपरीत जो प्राणी धर्माचरण करता है या सत्कर्म करता है; सुव्रती है, प्रत्येक कार्य में संयम एवं दया रखता है। वह जो भी व्रताचरण या सत्कर्म करता है, उसके लिए सदैव आश्वस्त-विश्वस्त रहता है। उसका वह मरण सकाममरण या पण्डितमरण है। मरण का समय आने पर स्वेच्छा से विवेकपूर्वक पुत्र-कलत्रादि सजीव तथा धन-साधन-शरीरादि निर्जीव पर-भावों के प्रति मोह-ममत्वरहित होकर मृत्यु को स्वीकारता है। वह इस जन्म में भी सुखी और सन्तुष्ट रहता है और अगले जन्म में भी वह सुखी होता है, अच्छे धर्मात्मा सुसंस्कारी कुलादि में जन्म लेता है। वहाँ उसे पूर्व पुण्योदय से अच्छा क्षेत्र, मकान, स्वर्णादि धन, पशु आदि तथा पत्नी-माता-पिता-पुत्र आदि श्रेष्ठ स्वजन एवं अच्छे मित्र ज्ञाति, गोत्र, वर्ण आदि मिलते हैं। ऐसे सुव्रती का मरण सकाममरण या समाधिमरण अथवा पण्डितमरण है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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