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________________ १४ मोक्ष के निकट पहुँचाने वाला उपकारी समाधिमरण जीवन और मरण दोनों साथ-साथ चलते हैं जीवन और मरण दोनों प्रत्येक सांसारिक प्राणी के साथ लगे हुए हैं । जहाँ जीवन है, वहाँ मरण भी अवश्य है । जिस सूर्य का प्रभात में उदय होता है, वह सन्ध्याकाल में अन्त भी होता है। जीवन के बाद मरण है, तो मरण के बाद फिर जीवन भी है। इसलिए जीवन और मरण में भेद - रेखा खींचना बहुत ही कठिन है। भगवान महावीर की अनुभवी आँखों ने यह स्पष्ट प्रतिपादित किया है-: ‘आवीचिमरण' के नाम से। जिस प्रकार समुद्र में एक लहर के समाप्त होने के साथ-साथ दूसरी लहर उत्पन्न होती है, फिर दूसरी के समाप्त होने के साथ-साथ तीसरी लहर पैदा होती है । इसी प्रकार प्राणी के जीवन और मरण की लहरें चलती रहती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो - जीवन के साथ-साथ मृत्यु भी चल रही है। जीवन मरण को छोड़कर नहीं चलता, इसी प्रकार मरण भी जीवन को छोड़कर नहीं चलता। दोनों साथ-साथ चल रहे हैं - जिन्दगी और मौत भी । . प्रतिक्षण होने वाले द्रव्य भावमरण के प्रवाह में मत बहो तात्त्विक दृष्टि से देखा जाए तो प्रतिक्षण आयुष्य के क्षण घटते रहते हैं, यानी जीव मरता जाता है। नीतिकार कहते हैं- "जिस रात्रि को जीव माँ के गर्भ में आता है, उसी दिन से अविच्छिन्न गति से वह मृत्यु की ओर प्रयाण करता जाता है ।" " अर्थात् जिस क्षण में जीव ने इस जन्म में जीना शुरू किया है, उसी क्षण से उसने मरना भी प्रारम्भ कर दिया है। यदि व्यक्ति १०० वर्ष जीता है तो साथ-साथ सौ वर्ष मरता भी है। अज्ञानी पुरुष इस प्रतिक्षण भावमरण के समय जाग्रत नहीं रहता, वह इस भावमरण के प्रवाह में बह जाता है, जबकि ज्ञानी पुरुष प्रतिक्षण होने वाले इस भावमरण के समय सतर्क होकर ज्ञान-बल से इसे रोक लेता है । इसी तथ्य की ओर मोक्षमाला में श्रीमद् राजचन्द्र जी ने अंगुलि -निर्देश किया है" क्षण-क्षण भयंकर भावमरणे का अहो राची रहो?" Jain Education International १. यामेव रात्रिं प्रथमामुपैति, गर्भे निवासी नरवीरलोकः । ततः प्रभृत्यस्खलित प्रयाणः, स प्रत्यहं मृत्यु समीपमेति ॥ For Personal & Private Use Only - हितोपदेश www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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