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________________ ॐ मोक्ष अवश्यम्भावी : किनको और कब? * ३३१ * दस बातें प्रशस्त एवं अन्तकर ... इसी प्रकार ‘भगवतीसूत्र' में श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए जो प्रशस्त एवं अन्तकर १0 बातें बताई हैं, उनका विधिवत् सम्यक प्रकार से अभ्यास करने से भी मोक्ष के निकट पहुँचा जा सकता है। वे इस प्रकार हैं-(१) लाघव (शास्त्र-मर्यादा से भी अल्प-उपधि रखना), (२) अल्पेच्छा (आहारादि में अल्प-अभिलाषा रखना), (३) अमूर्छा (अपने पास रही हुई उपधि में भी ममत्व = संरक्षणानुबन्ध न रखना), (४) अगृद्धि (आसक्ति का अभाव, भोजनादि के परिभोग काल में भी अनासक्ति रखना), (५) अप्रतिबद्धता (स्वजनादि या द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव में स्नेह या राग के बन्धन से प्रतिबद्ध न होना), (६) अक्रोधत्व, (७) अमानत्व (निरहंकारता, मदरहितता, गर्व न करना), (८) अमायत्व (माया, कपट, छल, ठगी, वंचना न करना), (९) अलोभत्व (लोभ, तृष्णा, वासना, इच्छा, लालसा, लिप्सा न रखना), (१०) कांक्षाप्रदोष (किसी भी सजीव-निर्जीव पदार्थ पर राग और द्वेष, आसक्ति और घृणा न रखना अथवा अन्य दर्शनों का आग्रह-हठाग्रहादि या आसक्ति न रखना अथवा जिस बात को पकड़ रखा है, उस पर स्वत्व मोह, राग तथा उससे भिन्न या विरुद्ध पर द्वेष या घृणा)। इन १० बातों का मुमुक्षु-जीवन में अभ्यास होता रहे तो व्यक्ति संवरयुक्त (संवृत) होकर समाधिपूर्वक देहत्याग करता (मरता) है, जिससे वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त तथा सर्वदुःखान्तकर हो जाता है। . इस प्रकार विभिन्न पहलुओं और विभिन्न उपायों से मोक्ष-प्राप्ति की निश्चितता के विविध सूत्रों पर ध्यान देकर सम्यग्दृष्टि, श्रावक एवं श्रमण निर्ग्रन्थ वर्ग विवेकपूर्वक अभ्यास करे तो इस भव में नहीं तो दो भव, तीन भव या अधिक से अधिक ७-८ भवों में अवश्य ही सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष प्राप्त कर सकता है। १. भगवती, श.१, उ. ९, सू. १७-१९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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