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________________ मोक्ष अवश्यम्भावी : किनको और कब ? ४ ३१७ किया, फिर तदनुसार बावड़ी आदि बनवाई। जनता के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर वह आसक्त हो गया । मरकर एक बार दुर्भाग्य से उसके शरीर में १६ महारोग उत्पन्न हुए । रोगों से पीड़ित होकर वह मरणशरण हुआ । मरकर उसी बावड़ी में वह मेंढक बना। आगन्तुक लोगों के मुँह से अपने नाम की प्रशंसा सुनते-सुनते पूर्व परिचित नाम पर ऊहापोह करते-करते जाति-स्मरण ज्ञान हुआ, उसने अपने पूर्व-जन्म में भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त वोध और स्वीकृत व्रत आए । सम्यक्त्व भंग होने का पश्चात्ताप हुआ । उसने अभिग्रह (संकल्प) कर लिया कि मैं दो-दो दिन के व्रत (उपवास) करूँगा, पारणे के दिन लोगों के स्नानादि के द्वारा अचित्त बना हुआ जल ही ग्रहण करूँगा । इसी बीच एक दिन राजगृह नगर में भगवान महावीर का पदार्पण सुनकर उनके दर्शनार्थ वह चल पड़ा। वह फुदकता हुआ जा रहा था कि श्रेणिक राजा की सेना के एक घोड़े के पैर से वह दब गया। मरणासन्न मेंढक ने एक ओर जाकर अरिहंत, सिद्ध और धर्माचार्य का स्मरण करके यावज्जीव अनशन स्वीकार कर लिया। समाधिपूर्वक भरकर वह प्रथम देवलोक में दर्दुर नामक देव बना । वहाँ से वह च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यरूप में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करेगा। 'भगवतीसूत्र' में उदायी और भूतानन्द गजराज के भविष्य का कथन है। वे दोनों श्रेणिक-पुत्र कोणिक के प्रधान हाथी थे। वे असुरकुमार देवों में से च्यवकर सीधे कोणिक के पट्टहस्ती बने । यहाँ से काल करके ये दोनों प्रथम नरक में उत्पन्न होंगे। वहाँ से अन्तररहित निकलकर दोनों महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यरूप में उत्पन्न होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। ' केवलज्ञान-प्राप्ति के विषय में एक शंका और उठती है कि श्री बाहुबली मुनि ने इतनी कठोर तपस्या की, शरीरादि पर से भी उनकी ममता - मूर्च्छा का व्युत्सर्ग हो चुका था, फिर भी उन्हें शीघ्र केवलज्ञान क्यों नहीं हुआ, जबकि कूरगडूक, केसरी मुनि, माषतुषु मुनि आदि पूर्वोक्त सामान्य साधुओं को अल्पकाल में ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया था, ऐसा क्यों ? इसका समाधान यह है कि जब तक कषायों तथा राग-द्वेष आदि का क्षय नहीं होता, तब तक जीव क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ नहीं हो सकता, बाहुबलि मुनि की यद्यपि कठोरचर्या थी, किन्तु मानकषाय से, अहंजनित राग से वे मुक्त नहीं हुए थे, इस कारण उनका केवलज्ञान रुका हुआ था, ज्यों ही ब्राह्मी सुन्दरी साध्वियों की प्रेरणा मिली, त्यों ही उन्हें भान हुआ, उन्होंने सूक्ष्म मानकषायों को भी छोड़कर अपने से लघु भ्राता किन्तु पूर्व दीक्षित मुनियों को वन्दन करने के लिये कदम उठाया, त्यों ही उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया । १. ( क ) औपपातिकसूत्र. सू. १६ (ख) ज्ञातासूत्र १३ (ग) भगवतीसूत्र, श. १७. उ. १, सू. ३-७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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