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________________ ॐ ३१४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ८ * विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए तथा अगले भव में महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य-जन्म पाकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। ___ संयमासंयम में श्रमणोपासक-श्रमणोपासिका हैं तथा तिर्यंच पंचेन्द्रिय अणुव्रती श्रावक हैं। 'औपपातिकसूत्र' में इनके गुणों का विस्तृत वर्णन है। वे अल्पारम्भी, अल्पपरिग्रही, धार्मिक, धर्मिष्ठ, धर्माख्यायिक धर्मपूर्वक आजीविका चलाने वाले, वे स्थूल रूप में जीवनभर हिंसादि १८ पापों से निवृत्त होते हैं, सूक्ष्म रूप में अंशतः अनिवृत्त होते हैं। आरम्भ-समारम्भ, पचन-पाचन, कूटने-पीसने, ताड़न-तर्जन वध-बंध परिक्लेश आदि से अंशतः विरत और अंशतः अविरत होते हैं। श्रमणोपासक व्रतों का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं। नवतत्त्वों में कुशल, निर्ग्रन्थ प्रवचन में दृढ़ तथा अनुरक्त रहते हैं। पौषधव्रत का सम्यक् अनुपालन करते हैं। अन्तिम समय में समाधिमरणपूर्वक आहार-शरीरादि का संलेखनापूर्वक अनशन करके आत्म-शुद्धिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त होते हैं। ऐसे श्रमणोपासक आराधक तथा संयमासंयमी हों तो उत्कृष्ट अच्युतकल्प देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य-जन्म पाकर उत्कृष्ट संयमाराधना करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं। संयमासंयमी श्रमणोपासक-श्रमणोपासिकाएँ ___ 'उपासकदशांगसूत्र' में आनन्द, कामदेव आदि जिन दस आदर्श श्रमणोपासकों तथा श्रमणोपासिकाओं का वर्णन है, वे अपने व्रत नियमादि श्रावकधर्म की आराधना करके संयमासंयमी होने से सभी काल धर्म प्राप्त करके प्रथम सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुए हैं तथा आगामी भव में महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य बनकर उत्तम करणी करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। दान की उत्कृष्ट भावना से जीर्णसेठ बारहवें देवलोक में, वहाँ से अगले भव में मोक्ष प्राप्त करेगा । इसी प्रकार 'धर्मरत्नप्रकरण' में श्रमणोपासक जीर्णसेठ का संक्षिप्त जीवनवृत्त अंकित है, जिसने अपनी जन्मभूमि विशाला नगरी में भगवान महावीर के छद्मावस्था में चातुर्मासार्थ विराजने पर प्रतिदिन भगवान के पधारने की भावना करता और प्रतीक्षा करता रहता। वह केवल दान की उत्कट भावना के बल पर बारहवें देवलोक में गया। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सर्वकर्मक्षयरूप 'मोक्ष प्राप्त करेगा। १. अनुत्तरौपपातिकसूत्र, वर्ग १-३ २. देखें-औपपातिकसूत्र में आराधक श्रमणोपासकों के गुण एवं स्वरूप, सू. २०११ ३. देखें-उपासकदशांगसूत्र में आनन्दादि दस श्रमणोपासकों का जीवनवृत्त . ४. देखें-धर्मरत्नप्रकरण तथा जैनकथा कोष में जीर्णसेठ श्रावक का वृत्तान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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