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________________ ॐ मोक्ष अवश्यम्भावी : किनको और कब? * ३१३ . तपश्चरण में या काया कष्ट में आत्म-शुद्धि का लक्ष्य न रहकर अन्य कोई भौतिक लक्ष्य अथवा रूढ़ि-पालन, परम्परा-पालन हो, वहाँ बालतप होता है।' ___ 'औपपातिकसूत्र' में सरागसंयमी श्रमणों का वर्णन है। उनके भी दो भेद हैंआराधक और विराधक। ‘औपपातिकसूत्र' में चार प्रकार के विराधक श्रमणों का वर्णन है। एक वे हैं, जो कान्दर्पिक, कौत्कचिक तथा मौखरिक आदि हैं, जो बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन करके अन्तिम समय में अपने संयम में लगे हुए दोषों की आलोचना-प्रतिक्रमणादि किये विना विराधक होकर, मरकर कान्दर्पिक देवों में उत्पन्न होते हैं। दूसरे ऐसे प्रव्रजित विराधक श्रमण हैं, जो अपना उत्कर्ष दिखाने वाले, परपरिवादक तथा भूतिकर्मिक और कौतुक (चमत्कार) का प्रदर्शन करने वाले होते हैं, वे भी इसी प्रकार अन्तिम समय में अपने दोषों की आलोचनादि किये बिना मरकर उत्कृष्टतः अच्युतकल्प देवलोक में आभियोगिक देवों में उत्पन्न होते हैं। तीसरे विराधक श्रमण हैं-निह्नव, जो बहुरतवादी, जीव प्रादेशिक अव्यक्तिक आदि ७ प्रकार के हुए हैं। वे वेश, चर्या आदि सब श्रमणों की-सी रखते हैं, किन्तु उनकी दृष्टि मिथ्या होती है, वे वीतराग वाणी या जिनोक्त सिद्धान्त का अपलाप करते हैं, सिद्धान्त विरुद्ध प्ररूपणा करते हैं। वे मरकर उत्कृष्टतः उपरिम ग्रैवेयकों में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। चौथे विराधक श्रमणआचार्य, उपाध्याय, कुल, गण आदि के प्रत्यनीक (विरोधी) होते हैं, वे आचार्यादि की निन्दा, अपकीर्ति तथा अपयश करने वाले होते हैं। वे मरकर उत्कृष्टतः लान्तक देवों में किल्विषी देव के रूप में उत्पन्न होते हैं।२।। आराधक सरागसंयमी, अनुत्तरौपपातिक देवलोक के बाद अगले भव में मुक्त - दूसरे आराधक सरागसंयमी वे हैं, जिनका वर्णन अनुत्तरौपपातिकसूत्र में है, जिसके तीन वर्ग हैं। प्रथम वर्ग में जाली, मयाली, उवमाली से लेकर अभयकुमार तक १0 अध्ययन हैं। इन दस ही श्रेणिक-पुत्रों ने तप, संयम का सम्यक्पालन . किया। अन्तिम समय में आत्म-शुद्धि करके संलेखनापूर्वक यावज्जीव अनशन भी किया। किन्तु संयम के साथ देव, गुरु, धर्म आदि के प्रति प्रशस्त रागभाव होने से दसों ही श्रमण विजय से सर्वार्थसिद्ध नामक पाँच अनुत्तर विमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ का आयुष्य पूर्ण करके ये सभी अगले भव में महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य-जन्म पाकर उत्कृष्ट तप, संयम की आराधना करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होंगे। इसी तरह दूसरे वर्ग में तेरह और तीसरे वर्ग में दस श्रमणों के नाम से अध्ययन हैं। दूसरे वर्ग में दीर्पसेन आदि तेरह श्रेणिक-पुत्रों का वर्णन है। तीसरे वर्ग में घोर तपसी काकंदी निवासी धन्ना अनगार आदि का वर्णन है। ये सभी पाँच अनुत्तर १. सराग-संयम-संयमासंयमाकामनिर्जरा-वालतपांसि देवस्य। -तत्त्वार्थसूत्र, अ. ६, सू. २० २. औपपातिकसूत्र, सू. ११, १८-१९, १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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