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________________ * शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति के विशिष्ट सूत्र 8 २८३ ॐ इहलौकिक-पारलौकिक कामना, निदान, फलाकांक्षा आदि दोष न हों। इस प्रकार शुद्ध संयम का सहजभाव से दृढ़तापूर्वक पालन = आचरण शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति के पुरुषार्थ में सफलता दिलाता है। चौथा बोला-शुद्ध मन से शील (ब्रह्मचर्य) पाले तो जीव वेगो-वेगो मोक्ष जाय शील का स्वरूप, अर्थ और विश्लेषण शील शब्द से यहाँ ब्रह्मचर्य के समस्त स्तरों का ग्रहण हो जाता है, किन्तु उनमें मुख्य तो पूर्ण ब्रह्मचर्य ही है, अन्य स्तर के ब्रह्मचर्यव्रतियों के लिए भी वही आदर्श है। पाँच महाव्रतों में ब्रह्मचर्य महाव्रत को अतिदुष्कर कहा गया है। ‘उत्तराध्ययनसूत्र' का १६वाँ अध्ययन इस तथ्य का साक्षी है। कामाचार यानी सभी अंगों सहित मैथुन की प्रवृत्ति एवं मैथुनचेष्टाओं का मन-वचन-काया से परित्याग करना शील (ब्रह्मचर्य) का व्यावहारिकदृष्टि से अर्थ है। निश्चयदृष्टि से ब्रह्मचर्य का अर्थ है-ब्रह्म यानी आत्मा (अथवा परम .= शुद्ध आत्मा) में रमण करना ही ब्रह्मचर्य है। अनात्मभाव में किंचित् भी रमण करना-द्वैतभाव की कल्पना अब्रह्मचर्य है। शुद्ध निश्चयनय से आत्मा त्रिकाल शुद्ध ब्रह्मस्वरूप है, उसमें अब्रह्मभाव है ही नहीं। किन्तु अशुद्ध निश्चयनय से जब भी आत्मा अनात्मभाव (पर-भाव या विभाव) की चाह वाला होता है, तब अब्रह्मचर्यवान् हो जाता है। - ब्रह्मचर्य-सम्बन्धित मनःशुद्धि के कतिपय उपाय .. मन की शुद्धि और दृष्टि सम्यक् हुए बिना ब्रह्मचर्य मोक्षमार्ग का अंग नहीं हो सकता, न ही उससे संवर-निर्जरा हो सकती है, न ही उसका यथेष्ट फल मिल सकता है। मनःशुद्धि के निम्नोक्त उपाय हो सकते हैं-अब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में मिथ्यादृष्टि एवं मिथ्याधारणा का त्याग, बौद्धिक मलिनता का त्याग (अब्रह्मचर्य की) इच्छा का निरोध, मैथुनभाव की पकड़ का त्याग, मैथुन-त्याग में स्वाधीनता अपनाना; ब्रह्मचर्य के पालन और धारण में हर्षानुभव, ब्रह्मचर्य-पालन सम्बन्धी फलाकांक्षा का त्याग, मैथुन-त्याग में अनुत्साहित न होना, ब्रह्मचर्य-पालन में स्वयं को धन्य मानना। . ब्रह्मचर्य के दस समाधि-स्थानों का सम्यक्पालन हो इसके अतिरिक्त मन, वचन, काया, इन्द्रियों, बुद्धि, चित्त और हृदय से ब्रह्मचर्य-पालन के लिए 'उत्तराध्ययनसूत्र' के १६वें अध्ययन में वर्णित ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान के सन्दर्भ में उक्त ब्रह्मचर्य-रक्षा के दशविध स्थानों का सम्यक्पालन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य की मन-वचन-काय से सुरक्षा के लिए निम्नोक्त सूत्रों के अनुसार चलना आवश्यक है-(१) वास-विवेक, (२) वचन-विवेक, (३) स्थान-विवेक, (४) दर्शन (प्रेक्षण) विवेक, (५) स्मृति-विवेक, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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