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________________ ॐ शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति के विशिष्ट सूत्र 82 २७१ * यथायोग्य इन चार भागों में विभक्त कर रहे हैं। इसलिए इन बोलों का क्रम बदल जायेगा। यदि इन बालों की विधिपूर्वक सम्यक् साधना-आराधना की जाये तो जीव कर्मरूपी जल से परिपूर्ण संसार को पार कर सकता है। सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष प्राप्त किये बिना कृतकृत्यता नहीं कर्मों के मुख्यतया दो प्रकार हैं-घातिकर्म और अघातिकर्म। घातिकर्मों का क्षय और क्षयोपशम करना संसार-सागर में तैरना है और अघातिकर्मों का भी क्षय करना संसार-सागर से पार होना है। संसार-सागर से पार हुए बिना सिद्धि = मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती और सर्वकर्ममुक्तिरूप सिद्धि प्राप्त किये बिना जीव अपने शुद्ध म्वरूप में अवस्थित होकर कृतकृत्य नहीं हो सकता। १९ बोलों का मोक्ष के चार अंगों में वर्गीकरण : कैसे-कैसे ? मोक्ष का सबसे पहला अंग है-सम्यग्दर्शन। इसका सिर्फ एक ही बोल है-मोक्ष की इच्छा (भावना) राखे तो जीव वेगो-वेगो मोक्ष में जाय। मोक्ष का द्वितीय अंग है-सम्यग्ज्ञान। इस सम्बन्ध में तीन बोल हैं-(१) गुरुमुख से सूत्र-सिद्धान्तों का वाचन-श्रवण करना, (२) (मोक्ष से सम्बद्ध) सम्यग्ज्ञान सीखना-सिखाना तथा स्वयं स्वाध्याय में लीन होना, दूसरों को पढ़ाना। (३) पिछली रात्रि में आत्मसम्प्रेक्षणपूर्वक धर्म-जागरण करना। मोक्ष का तृतीय अंग है-सम्यक्चारित्र। इससे सम्बन्धित मोक्ष-प्राप्ति के ८ बोल हैं-(१) सिद्धान्त के अनुसार सम्यक प्रवृत्ति करना, (२) गृहीत व्रतों का शुद्ध (निरतिचार) पालन करना, (३) संयम का दृढ़ता से पालन करना, (४) शुद्ध मन से शील (ब्रह्मचर्य) का पालन करना, (५) शक्ति होते हुए भी क्षमा करना। (६) कषायों पर विजय प्राप्त करना, (७) षड्जीवनिकाय की रक्षा करना, और (८) सुपात्रदान तथा अभयदान देना। इसके पश्चात् मोक्ष का चतुर्थ अंग है-सम्यक्तप (बाह्य-आभ्यन्तरतप)। इससे सम्बन्धित शीघ्र मोक्ष-प्राप्ति में सहायक ७ बोल हैं-(१) (बाह्य-आभ्यन्तर) उग्रतप करना, (२.) इन्द्रियों को अन्तर्मुखी करके वश में करना (प्रतिसंलीनतातप), (३) वैयावृत्य (सेवा) करना (वैयावृत्यतप), (४) उत्तम ध्यान करना (ध्यानतप), (५) लगे हुए दोषों की शीघ्र आलोचनादि करके शुद्ध होना (प्रायश्चित्ततप), (६) यथासमय सामायिक आदि आवश्यक करना (प्रतिक्रमण), (७) अन्तिम समय में संलेखना-संथारापूर्वक समाधिमरण प्राप्त करना। .१. (क) 'मोक्खपुरिसत्थो, भा. १' से भाव ग्रहण, पृ. १३-१५ (ख) शान्तिलाल जी भल्लगट द्वारा हस्तलिखित पन्ने से (ग) कृत्स्न-कर्म-क्षयो मोक्षः। ___ -तत्त्वार्थसूत्र, अ. १0/२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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