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________________ २६८ कर्मविज्ञान : भाग ८ पुरुषार्थ किये बिना केवल सर्वज्ञ द्वारा किये गए ज्ञान से निस्तार नहीं हो सकता, मोक्ष नहीं मिल सकता। वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकरों ने मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करने का जो ज्ञान दिया है, तदनुसार पुरुषार्थ करने पर स्वतः मोक्ष प्राप्त हो ही जाएगा। मोक्ष-प्राप्ति के पुरुषार्थ की सफलता के लिए पंचकारण समवाय अनिवार्य तीसरी बात -काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत कर्मक्षय और पुरुषार्थ, इन पाँच कारणों के समवाय (सम्मिलन) होने पर भव्य जीव (मनुष्य) को मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। भव्य मानव को काल (समय) आने पर ही मोक्ष प्राप्त होता है। काल के साथ 'स्वभाव' की भी आवश्यकता है। सिर्फ काल से ही मोक्ष मिल जाए तो अभव्य जीवों को भी मोक्ष मिल जाना चाहिए, किन्तु नहीं मिलता, क्योंकि उनमें मुक्त होने का स्वभाव नहीं है। काल और स्वभाव के साथ नियति (भवितव्यता) भी मोक्ष-प्राप्ति में परम कारण है; अन्यथा सारे भव्य जीव एक साथ मुक्त हो जाने चाहिए ? किन्तु नहीं होते। मुक्त वे ही होते हैं, जिन्हें काल, स्वभाव के साथ नियति का योग प्राप्त होता है। नियति का योग प्राप्त होने पर भी कृतकर्म अनुकूल होने चाहिए। कर्म अनुकूल हुए बिना मोक्ष के लिए सत्पुरुषार्थ करते रहने पर भी घोर उपसर्ग और परीषह भगवान महावीर को सहने पड़े। पूर्वकृत कर्म अनुकूल हो, मोक्ष-प्राप्ति के काल, स्वभाव और नियति का भी योग हो, किन्तु समभावपूर्वक रत्नत्रय अथवा चतुर्विध मोक्षमार्ग में पुरुषार्थ न हो तो मोक्ष प्राप्त नहीं होता । गजसुकुमाल मुनि के कर्म, काल, स्वभाव और नियति का योग था और उन्होंने समभावपूर्वक पुरुषार्थ किया तो शीघ्र सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष प्राप्त हो गया, किन्तु काल, स्वभाव, नियति और पुरुषार्थ, इन चारों का योग होने पर भी पूर्वकृत कर्मों का सर्वथा क्षय होने का योग न हो तो मोक्ष प्राप्त नहीं होता, जैसे - शालिभद्र मुनि के पूर्वकृत कर्म क्षय शेष रहने से उन्हें मोक्ष प्राप्त न हो सका । काल, स्वभाव और कर्म व नियति का योग होने पर भी राजा श्रेणिक मोक्ष के अनुकूल चारित्र-पालन का पुरुषार्थ न कर सके, इस कारण मुक्त न हो सके। ' मोक्षपुरुषार्थ में बाधक और साधक तत्व निष्कर्ष यह है कि मानव-भव एवं धर्माचरण के योग्य साधना पाकर आत्मार्थी साधक को एकमात्र मोक्ष - प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। पूर्ण मोक्ष भले ही इस जन्म में न मिले, फिर भी संवर और निर्जरा के द्वारा आंशिक मोक्ष तो प्राप्त होता ही है। प्रत्येक कार्य में अगर शुद्धोपयोग रखा जाय तो पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय हो सकता है और नये कर्मों का आगमन (आम्रव) भी रुक सकता है। मोक्षपुरुषार्थ में बाधक मुख्यतया दो हैं - ( 9 ) मानसिक द्वन्द्व, और ( २ ) पर - पदार्थों में आसिक्त । इन दोनों बाधक तत्त्वों के निराकरण के लिये साधक तत्त्व चार हैं - ( १ ) दृढ़ निश्चय, (२) लक्ष्य में स्थिरता, (३) पर-पदार्थों से विरक्ति, और (४) धैर्यपूर्वक अभ्यास । १. सन्मतितर्क प्रकरण, तृतीय काण्ड, भा. ५, गा. ५३, पृ. ७१० के आधार पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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