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________________ 3 शीघ्र मोक्ष प्राप्ति के पुरुषार्थ की सफलता २६३ दूरी बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में आवश्यक है - मोक्ष के स्वरूप को जानने के साथ-साथ उसके प्रति श्रद्धा, दृष्टि, रुचि एवं आस्था का सम्यक् निर्माण हो । दृष्टिकोण को बदलने और आस्था के सम्यक् निर्माण के लिए आवश्यक है - मूर्च्छा ( मोह) को कम करना, कपाय के आवेग ( अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी कपाय के आवेग ) को मन्दतम करना । अर्थात् कपाय और आवेग की तीव्रता मन्दतर, मन्दतम नहीं होगी, तब तक ज्ञान और दृष्टिकोण को विपरीत बनाने वाली अथवा ज्ञान के अनुरूप आचरण में वाधा डालने वाली मोहजनित मूर्च्छा का चक्र नहीं टूटेगा। चारों आवरणों को मिटाने के लिए अज्ञान के आवरण का हटना एक बात है और उसके साथ संलग्न मोहजनित मूर्च्छा का हटना दूसरी बात है और उसके साथ सम्यक् आचरण की शक्ति को कुण्ठित, विकृत और कपाय के वेग को तीव्र कर देना तीसरी बात है । इसीलिए मोक्षपुरुषार्थ के प्रति आस्था, निष्ठा और दृढ़ श्रद्धा के निर्माण के लिए सम्यग्ज्ञान • से ज्ञान के आवरण को दूर करने के साथ-साथ सम्यग्दर्शन से दृष्टि और श्रद्धा के निर्माण की जरूरत है, इसके साथ ही आस्था के सम्यक् निर्माण के लिए मोहजनित कषाय-नोकषायों को मन्दतर करने की आवश्यकता है, जो सम्यक्चारित्र के द्वारा होगी। किन्तु आवेगों की तीव्रता को दूर करने, मन्दतर करने हेतु सम्यक् बाह्याभ्यन्तर तप की आवश्यकता है। मोक्ष का स्वरूप जानते हुए भी कर्मक्षय का पुरुषार्थ नहीं कर पाते • अधिकांश व्यक्ति मोक्ष या परमात्मपद को प्राप्त करना चाहते हैं, उनका स्वरूप भी जानते हैं, उपाय भी । किन्तु प्रायः आशा, आकांक्षा, इच्छा, प्रसिद्धि, प्रशंसा, लोभ, भय, काम, आवेश आदि से इतने अधिक पीड़ित या अभ्यस्त रहते हैं कि वे मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करने हेतु आस्था, निष्ठा, श्रद्धा, दृष्टिकोण एवं • तपःशक्ति का सम्यक् प्रयोग - उपयोग नहीं कर पाते। उनके अध्यवसायों में सम्यक् तीव्रता एवं क्षमता नहीं आ पाती । यही कारण है कि वे मोक्ष के विषय में सम्यक् पुरुषार्थ नहीं कर पाते। उनकी दृष्टि या श्रद्धा - आस्था केवल कामचलाऊ या लोकदिखाऊ बनी रहती है। सम्यग्दृष्टि एवं आस्था के लिए वस्तु या तथ्य की १. ज्ञान केवलज्ञान (शुद्धतम अनन्त ज्ञान ) कव होता है ? इसके लिए 'तत्त्वार्थसूत्र' में स्पष्ट कहा है–‘“मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तराय क्षयाच्च केवलम्।" मोह के क्षय से, साथ ही ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्म के क्षय से केवलज्ञान होता है और पूर्ण मोक्ष होता है - ' कृत्स्न- कर्मक्षयो मोक्षः' के अनुसार समस्त कर्मों के सर्वथा क्षय से । - सं. २. 'अपने घर में' से भावांश ग्रहण, पृ. ११९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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