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________________ ४ १६८ कर्मविज्ञान : भाग ८३ तथा चिकित्सक के निर्देश के अनुसार उसका सेवन किया जाए। इसी प्रकार सर्वकर्मबन्ध और तत्फलस्वरूप जन्म-मरणादि भव- भ्रमणरूप रोग तभी समूल नष्ट हो सकता है, जव सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान सहित सम्यक्चारित्र तथा सम्यक्तप की साधना-आराधना की जाय। यानी सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र-तप ये चारों समष्टिरूप से मोक्ष के साधक हैं, व्यष्टिरूप से पृथक्-पृथक् नहीं ।' मोक्षमार्ग के विषय में अन्य दर्शनों और जैनदर्शन का दृष्टिकोण भारतीय दर्शन में मोक्ष के स्वरूप की तरह मोक्ष के उपाय (मार्ग) के विषय में विभिन्न मत हैं। नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त और बौद्ध आदि दार्शनिक ज्ञानमात्र (विद्या) को मोक्ष का कारण मानते हैं। कुमारिल भट्ट एवं प्रभाकर तथाकथित कर्म (आचरण) और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन मानते हैं, जबकि. रामानुज, माध्व, वल्लभ आदि वैष्णवाचार्य एकमात्र भक्ति को । जैनदृष्टि से सामान्य ज्ञान ( मिथ्याज्ञान या अज्ञान), सामान्य दर्शन ( मिथ्यादर्शन, मिथ्यात्व या देव-गुरु-धर्म के प्रति अंश्रद्धा, आत्मा के प्रति सम्यग्दृष्टि का अभाव आदि ) तथा सामान्यचारित्र ( मिथ्याचारित्र, ज्ञान- दर्शनविहीन क्रियाकाण्ड, स्वमतमान्य क्रियाएँ आदि) मोक्ष प्राप्ति के उपाय नहीं हैं। सम्यक् ज्ञानयोग, सम्यक् कर्मयोग और सम्यक् भक्तियोग, ये तीनों मिलकर व्यवहार मोक्षमार्ग के साधक हो सकते हैं। इसी दृष्टि से 'तत्त्वार्थसूत्र' में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र' की समष्टि को मोक्ष का मार्ग (उपाय या साधन) बताया है। इनमें से एक के अभाव में भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती । २ केवल श्रद्धा व ज्ञान से भी मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं मोक्ष के विषय में केवल श्रद्धा रखने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती; क्योंकि श्रद्धा तो मात्र रुचि की परिचायिका है। यदि श्रद्धामात्र से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाए तो भूख लगने पर उसके प्रति श्रद्धामात्र से भोजन पक जाना चाहिए । दूसरी बात यह है कि श्रद्धामात्र से मोक्ष मानने से सम्यक्चारित्र का ग्रहण करना व्यर्थ हो जायेगा। इसके अतिरिक्त चारित्रग्रहण (साधु) की दीक्षा धारण करने की श्रद्धामात्र से सांसारिक दोष नष्ट नहीं हो जाते, दीक्षा धारण करने से पहले और १. (क) तत्त्वार्थ वार्तिक १/१/४९, पृ. १४ २. (ख) सर्वार्थसिद्धि उत्थानिका, पृ. ३ ( पूज्यपाद) (ग) 'जैनदर्शन में आत्म-विचार' (डॉ. लालचन्द्र जैन ) से भाव ग्रहण, पृ. २८५ (क) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र भाष्य १/१ (ख) सर्वार्थसिद्धि १/१ (ग) उपासकाध्ययन १/१७-१९, पृ. ५ (घ) सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्राणि मोक्षमार्गः । Jain Education International For Personal & Private Use Only - तत्त्वार्थसूत्र १/१ www.jainelibrary.org
SR No.004249
Book TitleKarm Vignan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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