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________________ ऋणानुबन्ध : स्वरूप, कारण और निवारण ५४५ ही। उसे नानी अपने साथ अपने गाँव में ले आई। वहाँ दोनों मामा और नानी के पास मांगीलाल रहने लगा। नानी का प्यार मिला। धार्मिकवृत्ति की नानी ने मांगीलाल को शान्तिनाथ भगवान्, सिद्ध भगवान् और भगवान् महावीर का भजन सिखाया। जब तक उससे ये तीनों भजन नहीं सुन लेती थी, तब तक उसकी मिठाई खाने की जिद पूरी नहीं करती थी। अभी मांगीलाल १४ वर्ष का ही था कि भजन सुनते-सुनते एक दिन नानी ने शरीर त्याग दिया। नानी की प्यार भरी गोद छिन जाने से मांगीलाल को बहुत दुःख हुआ। नानी के आँख मूंदते ही मांगीलाल के मिठाई खाने के शौक में बाधा पड़ने लगी। बड़ा मामा उसे डांट देता था। एक दिन बड़े मामा द्वारा असह्य कटु शब्द कहे जाने से वह मामा का घर छोड़कर वापस अपने गाँव में आ गया। पिछले नौ वर्षों में पिता का कच्चा मकान भी टूट-फूट गया था। उसे लीप-पोतकर किसी तरह ठीक किया। एक कमरे को साफ करके उसमें रहने लगा। गाँव के ही एक वणिक् ने मांगीलाल को गाँवों में फेरी करके सामान बेचने की सलाह दी। कुछ किराने का सामान अपने पास से दिया। माल बेचने के कुछ गुर सिखाये। मांगीलाल अब पीठ पर सामान लादकर गाँव-गाँव में घूम कर माल बेचता और शाम को वापस घर लौटता। अपने हाथ से भोजन बनाता और खा-पीकर सो जाता। कभी-कभी वापस लौटते समय रात हो जाती तो रास्ते में एक व्यक्ति मिलता, वह मांगीलाल से भजन सुनता, जो उसने बचपन में नानी से सीखे थे; उसे अपने गाँव तक पहुँचाता और मिठाई खिलाता था। उसने अपना नाम राममाली बताया। एक दिन मांगीलाल के अत्यन्त आग्रह के वश वह उसके घर तक आया और मांगीलाल ज्यों ही अपने घर में घुसा कि वह अन्तर्धान हो गया। मांगीलाल के मन में भय का भूत घुस गया कि यह कोई बला मेरे पीछे लग गई है। भय के मारे वह मूर्च्छित हो गया। सुबह गाँव का प्यारेलाल नामक एक युवक उसके पास आया, देखा तो भयंकर ज्वर ! वह वैद्य को लाया, दवा दी। इससे मांगीलाल को होश तो आ गया, किन्तु बुखार सात दिन तक उतरा नहीं। आठवें दिन प्यारेलाल जरूरी काम से दूसरे गाँव जाने का कहकर गया; किन्तु थोड़ी ही देर में प्यारेलाल जैसा ही एक व्यक्ति आया। मांगीलाल से प्यार से बातें करने लगा। खुलते-खुलते मांगीलाल ने राममाली से पहली भेंट से लेकर अब तक की सारी घटना सुनाई और पूछा-क्या भूत-प्रेत होते हैं? उसने कहा-होते हैं। पर मनुष्य उसके कारण डरता या मरता नहीं। तुझे भय न होता तो बीमार न पड़ता। फिर उस व्यक्ति ने कहा-"देव के आने के मुख्य तीन कारण है-(१) धर्मसाधना, तपस्या, (२) स्नेह या (३) द्वेष। अगर देव का तेरे प्रति द्वेष होता तो वह तुझे परेशान करता, दुःख देता, परन्तु उसने कभी तुझे परेशान नहीं किया; बल्कि तेरे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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