SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ में बंधी हुई चिट्ठी खोलकर देखी, और उसमें लिखी इबारत पढ़ी तो सिर पीट लिया-"हाय! मैंने कैसा अनर्थ कर डाला! एक वफादार और निर्दोष कुत्ते को मार डाला!" किन्तु अब पछताना व्यर्थ था। कहते हैं-उस मालिक ने उसी रातानाडा तालाब की पाल पर अपने वफादार कुत्ते का स्मारक बनाया, जो आज भी उसकी वफादारी की स्मृति करा देता है। यह था मनुष्य के पूर्वशुभ ऋणानुबन्ध के उदय के फलस्वरूप वफादार कुत्ते का सम्बन्ध जुड़ना, किन्तु मनुष्य के द्वारा अविवेक के कारण अशुभ ऋणानुबन्ध का बांधना। मनुष्य के द्वारा मनुष्यभव में दूसरे मनुष्य के प्रति अन्याय अनीति से अशुभ ऋणानुबन्ध बांध लेने के पश्चात् आगामी भव में उसके उदय में आने पर उस ऋण को ऊंट बनकर चुकाने का एक उदाहरण तेमाजी और रामाजी दो भाई थे। दोनों खेती करते थे। पहले तो दोनों का एक ही खेत था। दोनों भाई और दोनों के पारिवारिक जन साथ-साथ रहते थे। किन्तु एक दिन दोनों भाइयों में किसी छोटी-सी बात को लेकर अनबन हो गई। दोनों ने खेत का बंटवारा कर लिया। बड़े भाई ने छोटे भाई के साथ चालाकी करके अपने हिस्से में अधिक उपजाऊ और अच्छा खेत रख लिया और छोटे भाई को कम उपजाऊ और साधारण-सा खेत दे दिया। छोटे भाई की पत्नी ने जब अपने पति को क्षुब्ध होकर समझाया तो उसने कहा- "बड़ा भाई पिता तुल्य होता है। हमें उनके साथ झगड़ा नहीं करना है। जैसा हमारे भाग्य में था, वैसा हमें मिल गया।" इस प्रकार छोटे भाई ने बड़े भाई द्वारा किए हुए अन्याय और पक्षपात को सह लिया, किन्तु बड़े भाई का रवैया नहीं बदला। बड़े भाई की पत्नी का स्वभाव. अच्छा था, उसने पति को बहुत समझाया, फिर भी वह न माना। इस अशुभ ऋणानुबन्ध के उदय में आने पर मरकर वह एक राजा की पशुशाला में ऊंट बना। उसकी पत्नी अपने शुभ अध्यवसाय से शुभ ऋणानुबन्ध के उदय के कारण मर कर उसी राजा की पुत्री बनी। राजकुमारी अपनी पशुशाला में छोटे-से ऊंट-शिशु के साथ खेलती-कूदती, उसके सिर पर हाथ फिराती, अपने हाथ से घास खिलाती, नीम की पत्तियां खिलाती। राजा ने अपनी पुत्री का ऊँट शिशु के साथ परस्पर आत्मीय भाव देखकर निश्चय कर लिया कि राजकुमारी को विवाह में दहेज के रूप में यह ऊँट भी देगा। युवावस्था आने पर राजकुमारी का विवाह पूर्वऋणानुबन्ध के उदय के फलस्वरूप उसके पूर्वभव के देवर, किन्तु वर्तमान में एक राजकुमार के साथ हुआ। १. जोधपुर के प्राचीन श्रावकों से सुनी हुई घटना । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy