SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋणानुबन्ध : स्वरूप, कारण और निवारण ५३९ दूसरे नये कर्मों का ऋणानुबन्ध हो जाता है और भविष्य में उसका कटुफल भोगना पड़ता है। कई माता-पिता स्वभाव के अच्छे होते हैं, किन्तु पूर्वकृत अशुभ ऋणानुबन्ध के उदय के कारण उनके लड़के उनका अपमान करते हैं, उनकी सेवा नहीं करते, उन्हें घर से निकाल देते हैं। उन्हें गालियाँ देते हैं। समाज में उन्हें बदनाम करते हैं। यह सब पूर्वकृत अशुभ कर्मबन्ध का उदय है। उनके पुत्र पूर्वजन्म का ऋण चुकते हैं और नया अशुभ ऋणानुबन्ध करते हैं। मनुष्य का तिर्यञ्च के साथ शुभ-अशुभ ऋणानुबन्ध का उदय मनुष्य का संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीवों के साथ ऋणानुबन्ध का शुभ या अशुभ उदय देखा जाता है। शुभ उदय के समय कुत्ता, घोड़ा, हाथी इत्यादि पशुओं का अपने मालिक के साथ इतना प्रबल राग होता है कि वे अपने मालिक के या मालिक के परिवार के लिए संकट के समय प्राण होमने को तैयार हो जाते हैं। जोधपुर के रातानाडा मौहल्ले के एक वफादार कुत्ते के सम्बन्ध में सुनते हैं कि वह इतना वफादार कुत्ता था कि मालिक ने अपने एक रिश्तेदार को कर्ज चुकाने हेतु वह कुत्ता दे दिया। मालिक के कहने पर वह कुत्ता उस व्यक्ति के साथ चला गया। उसके घर की चौकसी वह कुत्ता बहुत मनोयोगपूर्वक करता था। एक दिन इस नये मालिक के घर में रात को चोर घुस आए। चोरी करके बहुत-सा माल गठड़ी बांध कर ले गए। कुत्ते ने चुपचाप यह देख लिया और उन चोरों के पीछे चुपचाप गया। चोरों ने जहाँ गड्ढा खोद कर धन की गड़ी गाड़ी, वह स्थान देख कर वह अपने दूसरे मालिक के पास • लौट आया। सबेरे उक्त मालिक को पता लगा कि बहुत-सा माल चोरी हो गया है। कुत्ता उक्त मालिक की धोती को मुँह से खींच कर चलने का इशारा करने लगा। मालिक समझदार था। वह कुत्ते के पीछे-पीछे चलता रहा। जहाँ चोरों ने धन गाड़ा था, वहाँ पहुँच कर कुत्ते ने मुँह से खोदने का इशारा किया। मालिक ने वह गड्ढा खोदा तो उसे अपने यहाँ से चुराया हुआ सारा धन मिल गया। मालिक उक्त कुत्ते पर बहुत प्रसन्न हुआ और एक चिट्ठी उस कुत्ते के पुराने मालिक के नाम लिखी " आपके दिये हुए वफादार कुत्ते ने मेरा चोरी में गया हुआ धन वापिस प्राप्त करा दिया । अतः मेरा कर्ज भर पाया है। मैं खुशी से इसे आपकी सेवा में भेज रहा हूँ।" यह चिट्ठी कुत्ते के गले में बांध दी और उसे कहा- "बेटे ! तुम अपने पुराने मालिक के पास जाओ । मैं तुम्हारी सेवा से बहुत सन्तुष्ट हूँ।" कुत्ता ख़ुशी से उछलता हुआ अपने पुराने मालिक के पास पहुँचा तो उसने कुत्ते को यों बीच में ही नये मालिक को छोड़कर आये हुए देख अत्यन्त क्रुद्ध होकर लाठी का जोर से प्रहार किया । प्रहार इतना तीव्र था कि कुत्ते ने वहीं चीखकर दम तोड़ दिया। पुराने मालिक ने उसके गले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy