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________________ २६२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ ध्यान रहे कि प्रत्येक मार्गणा का नामकरण उसके मुख्य भेदों की अपेक्षा से किया गया है, साथ ही उसमें अन्तर्भूत प्रतिपक्षीभूत भेदों की भी प्ररूपणा की गई है। जैसे-ज्ञानमार्गणा में अज्ञान की, संयममार्गणा में असमय की भी प्ररूपणा है। यहाँ मार्गणाओं में सामान्य रूप से तथा गुणस्थानों की अपेक्षा से बन्ध-स्वामित्व का कथन किया गया है। - चौदह मार्गणाओं में सामान्यतया गुणस्थान-प्ररूपणा सर्वप्रथम क्रमशः चौदह मार्गणाओं में सामान्यतया गुणस्थानों की प्ररूपणा इस प्रकार की गई है (१) गति-तिर्यंच गति में आदि के पांच, देवगति और नरक गति में आदि के चार, तथा मनुष्य गति में पहले मिथ्यात्व से लेकर अयोगिकेवली पर्यन्त चौदह गुणस्थान होते हैं। (२) इन्द्रिय-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में पहला और दूसरा, ये दो गुणस्थान होते हैं। पंचेन्द्रियों में सभी गुणस्थान होते हैं। (३) काय-पृथ्वी, जल, वनस्पतिकाय में पहला और दूसरा दो गुणस्थान होते हैं, गतित्रसरूप अग्निकाय और वायुकाय में पहला गुणस्थान और त्रसकाय में सभी गुणस्थान होते हैं। (४) योग-पहले से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक १५ योग होते हैं। (५) वेद-वेदत्रिक में आदि के नौ गुणस्थान होते हैं, (उदयापेक्षा)। (६) कषाय-क्रोध, मान, माया में आदि के नौ गुणस्थान तथा लोभ में आदि के १० गुणस्थान होते हैं। (७) ज्ञान-मति, श्रुत, अवधिज्ञान में अविरत सम्यग्दृष्टि आदि नौ गुणस्थान पाये जाते हैं। मनःपर्यायज्ञान में प्रमत्तसंयत आदि सात गुणस्थान हैं। केवलज्ञान में सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ये दो गुणस्थान पाये जाते हैं। मति-अज्ञान, श्रुत १. (क) गइ-इंदिए य काए जोए वेए कसाय-नाणेसु। संजम-दंसण-लेसा, भव-सम्मे सन्नि आहारे॥९॥ -चतुर्थ कर्मग्रन्थ (ख) गइ-इंदिएसु काये जोगे वेदे कसाय-णाणे य। संजम-दंसण-लेस्सा भविया, सम्मत्त-सण्णि-आहारे।। ४१ ॥ -गोम्मटसार जीवकाण्ड (ग) चौदह मार्गणाओं के लक्षण, स्वरूप के लिए देखें इसी खण्ड में मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण १-२ शीर्षक निबन्ध, तथा पंचसंग्रह, राजवार्तिक, सर्वार्थसिद्धि, धवला आदि ग्रन्थ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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