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________________ क्या कर्म महाशक्तिरूप है ? ४३३ पर्यायवाची बताते हुए कहा गया है-"विधि, स्रष्टा, विधाता, दैव, पुराकृत कर्म, और ईश्वर, इन सब शब्दों को कर्मरूपी ब्रह्मा के पर्यायवाची समझने चाहिए।" कर्मरूपी विधाता का विधान अटल है विश्व के इस विधाता का विधान अटल है। मानव, दानव, देव, देवेन्द्र, नरेन्द्र, धरणेन्द्र, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, नरपाल, आदि यहाँ तक कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीर्थकर, पैगम्बर, ऋषि-महर्षि, अवतार आदि कोई भी इसके दण्ड से बच नहीं सका है, और न ही बच सकता है। सभी एक या दूसरे रूप में इसके पाश में जकड़े हुए हैं, और जकड़े गये हैं। कर्मरूपी महाशक्ति को नमस्कार करते हुए भर्तृहरि को कहना पड़ा- . "जिस कर्म ने (वैदिक पुराणों के अनुसार) ब्रह्मा को कुम्भकार की तरह ब्रह्माण्ड रूपी भाण्ड (बर्तन) बनाने में नियंत्रित (नियोजित) कर रखा है; जिसने विष्णु को दस अवतार ग्रहण करने तथा सृष्टि का पालन करने का गहन कार्य देकर घोर संकट में डाल दिया। जिस कर्म ने रुद्र (महादेव) को खप्पर हाथ में लेकर भिक्षाटन करने का कार्य सौंप दिया। जिस कर्म के प्रभाव से तेजस्वी अंशुमाली सूर्य को नित्य ही गगन-मण्डल में भ्रमण करना पड़ता है। उस कर्म को नमस्कार है।"२ निष्कर्ष यह है कि राजा हो या रक, धनिक हो या निर्धन, सम्राट हो चाहे परिव्राट्, सेवक या दास हो चाहे स्वामी, श्रमिक हो या अश्रमिक, निरक्षर हो चाहे साक्षर, बुद्धिमान् हो चाहे मूर्ख, युवक हो या बालक, युवती हो चाहे वृद्धा, प्रौढ़ हो चाहे वृद्ध, सभी कर्मशक्ति के आगे नत-मस्तक हैं। कर्म : शक्तिशाली शास्ता एवं अनुशास्ता ... कर्म एक ऐसा प्रचण्ड शक्तिशाली शास्ता अथवा अनुशास्ता है, जो अपने कानून कायदों को भंग करने, या मर्यादाओं को तोड़ने वालों को दण्ड देता है और शुभ कर्म एवं परोपकारमूलक सुकृत्य करने वालों को पुरस्कार १. विधिः स्रष्टा विधाता च दैव कर्म पुराकृतम्। ईश्वरश्चेति पर्याया विज्ञेयाः कर्मवेधसः ॥ _ -आदिपुराण (महापुराण) ४/३७ २. "ब्रह्मा येन कुलालवनियमितो ब्रह्माण्ड- भाण्डोदरे; विष्णुर्येन दशावतार-गहने क्षिप्तो महासंकटे। रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं सेवते, सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे।" __ -भर्तृहरि : नीतिशतक, श्लो. ९२ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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