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________________ कर्मशास्त्रों द्वारा कर्मवाद का अध्यात्ममूलक सर्वक्षेत्रीय विकास २८७ उदाहरणार्थ-कोई व्यक्ति जानता नहीं है कि उसे क्या करना है ? उसकी बुद्धि अतीव मन्द है। इसका कारण मानस-शास्त्री से पूछोगे तो वह यही उत्तर देगा कि उक्त व्यक्ति का मस्तिष्क विकसित नहीं है। उसके ज्ञानतन्तु दुर्बल हैं। इस कारण इसका ज्ञान कम विकसित है। अभिप्राय यह है कि मानस-शास्त्र ज्ञान के ह्रास या बौद्धिक मन्दता का कारण शरीर में ढूंढ़ेगा, तदनुसार उक्त समस्या का समाधान करेगा। परन्तु उक्त व्यक्ति की बौद्धिक मन्दता, ज्ञानतन्तु की दुर्बलता अथवा मस्तिष्क का न्यून विकास क्यों है ? इसके कारण के विषय में मानसशास्त्र निरुत्तर हो जाएगा। ___ कर्मशास्त्र के पास इसका अनुकूल एवं युक्तियुक्त समाधान है। वह कहेगा-उक्त व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास नहीं हुआ, या उसके ज्ञानतन्तु कमजोर है, इसका मूल कारण स्थूल शरीर में ढूंढने जाओगे तो पता नहीं लगेगा। सूक्ष्मतम शरीर-कार्मण शरीर में इसका कारण छिपा है। इसके ज्ञानावरणीय कर्म का प्रबल उदय है, जिसके कारण बौद्धिक विकास नहीं हुआ है, ज्ञानतन्तु दुर्बल हो रहे हैं। और ज्ञानावरणीय कर्मबन्ध के भी मुख्यतया ५ कारण हैं। जिनके कारण इसके ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध हुआ है। वह पूर्वबद्ध ज्ञानावरणीय कर्म अब उदय में आ रहा है, फल दे रहा है। जो व्यक्ति जानता तो है, परन्तु करने में सक्षम नहीं है। उसका कारण भी मानसशास्त्र या शरीरशास्त्र शरीर की शक्ति-अशक्ति को अथवा वंशपरम्परा से प्राप्त अशक्ति को बताएगा। परन्तु कर्मशास्त्र से पूछेगे तो वह वीर्यान्तराय कर्म के उदय को मूल कारण बताएगा। यही कर्म उसकी कार्यक्षमता, करने की शक्ति को रोक रहा है, शक्ति प्रकट करने में बाधक बना हुआ है। उसकी कर्तृत्व शक्ति में अवरोध पैदा कर रहा है। - यद्यपि बौद्धिक मन्दता या कर्तृत्व-अक्षमता में ज्ञान के साधनों, सहायक अध्यापकों या गुरुजनों के संयोग, अध्ययन-स्मरण में प्रमाद, आलस्य, अकर्मण्यता, हीनता की भावना, आत्मविश्वास की कमी, वैसे पोषक खाद्य का अभाव आदि कई निमित्त एवं परिस्थितिजन्य सहायक कारण हो सकते हैं। उन सहायक कारणों को मानने में कर्मशास्त्र को आपत्ति नहीं है, किन्तु इन सबके मूल कारण की मीमांसा में कर्मशास्त्र का उत्तर सर्वाधिक युक्ति-संगत एवं प्रामाणिक होगा। ... निष्कर्ष यह है कि कर्मशास्त्र प्रत्येक घटना, आचरण या व्यवहार अथवा समस्या के मूल कारण की मीमांसा करता है, जबकि शरीरशास्त्र, मानसशास्त्र या भौतिक विज्ञान बाह्य निमित्त कारणों की मीमांसा करके रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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