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________________ ५९० षट्प्राभृते [६. २७( सब्वे कसाय मोत्तु ) सर्वान् कषायान् क्रोधमानमायालोमान् मुक्त्वा परित्यज्य क्षीणकषायो मुनिर्भूत्वा । ( गारवमयरायदोसवामोहं ) गारव च शब्दगारवं--अहं वर्णोच्चारं रुचिरं जानामि न त्वेते यतयः, ऋद्धिगारवं-शिष्यादिसामग्री मम बह्वी वर्तते न त्वमीषां यतीनां, सातगारवं--अहं यतिरपि सन् इन्द्रत्वसुखं चक्रिसुखं तीर्थंकरसुखं भुंजानो वर्ते विमे यतयस्तपस्विनो वराकाः । मदा अष्ट--अहं ज्ञानवान् सकलशास्त्रज्ञो वर्ते, अहं मान्यो महामंडलेश्वरा मत्पादसेवकाः । कुलमपि मम पितृपक्षोऽतोवोज्ज्वल: कोऽपि ब्रह्महत्याऋषिहत्यादिभिरदोषं । जातिः मम माता संघस्य पत्यु? हिता-शीलेन सुलोचना सीता-अनन्तमती चन्दनादिका वतते । बलं-अहं सहस्रभटो लक्षभटः कोटीभटः । ऋद्धि:-ममानेकलक्षकोटिगणनं धनमासीत् तदपि मया त्यक्तं अन्ये मुनयोऽधमर्णाः संतो दीक्षां जागृहः । तपः-अहं सिंहनिष्क्रीडितविमानपंक्तिसर्वतोभद्रशातकुंभसिंहविक्रमत्रिलोकसारवज्रमध्याल्लोणोल्लीणमृदंगमध्यधर्मचक्रवालरुद्रोत्तरवसंतमेरुनन्दी mmmmmmmmmmmmmmmm.com विशेषार्थ-सर्व कषाय से क्रोध, मान, माया और लोभ का ग्रहण होता है । गारव के तीन भेद हैं-१-शब्द गारव २-ऋद्धिगारव और ३-सात गारव । 'मैं वर्गों के उच्चारण सुन्दर जानता हूँ ये अन्य मुनि नहीं जानते' इस प्रकार के गर्वको लिये हुए परिणाम को शब्द-गारव कहते हैं । 'मेरी शिष्यादि सामग्रो बहुत है इन मुनियों को नहीं है' इस प्रकार के गर्व रूप परिणाम को ऋद्धि-गारव कहते हैं। मैं मुनि होने पर भी इन्द्रपनेका सुख, चक्रवर्ती का सुख और तीर्थंकर का सुख भोग रहा हूँ ये बेचारे तपस्वी क्या भोगेंगे' इस प्रकार के गर्व रूप परिणाम को सात गारव कहते हैं। मद आठ होते हैं-१ ज्ञानमद, २ पूजामद, ३ कुलमद, ४ जातिमद, ५ बलमद, ६ ऋद्धिमद, ७ तपमद और ८ शरीर मद । मैं ज्ञानवान् हूँ, सकल शास्त्रों का ज्ञाता हूँ इस प्रकारके अहंकारको ज्ञानमद कहते हैं। मैं माननीय हूँ, महामण्डलेश्वर राजा हमारे चरण सेवक हैं इस प्रकार के अहंकार को पूजामद कहते हैं, मेरा पितृपक्ष कोई अद्भुत तथा अत्यन्त उज्ज्वल है, ब्रह्महत्या ऋषिहत्या आदि दोषोंसे कभी दूषित नहीं हुआ है, इस प्रकार के अहंकार को कुलमद कहते हैं। मेरी माता संचपति (सिंघई) को लड़की है तथा शोलसे सुलोचना, सीता, अनन्तमती तथा चन्दना आदि है, इस प्रकार के अहंकारको जाति मद कहते हैं। मैं सहस्रभट, लक्षभट अथवा कोटोभट हूँ इस प्रकार के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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