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________________ षट्प्राभृते 'अदृष्टविग्रहाच्छान्ताच्छिवात्परमकारणात् । नादरूपं समुत्पन्नं शास्त्रं परमदुर्लभं । अशरीरस्य शास्त्रोत्पत्तिर्न संगच्छते कूर्म रोमवत् बंध्यास्तनन्धयवत् शशविषा - णवत् विष्णुपदलतांतवत् मरुमरोचिकोदकवत् " अष्टौ स्थानानि वर्णानां " इति शब्दानां करणकारणत्वात् । ( तिहुवणभणवपईवो ) त्रैलोक्यगृहस्य दीपः प्रद्योतकः त्रिभुवनप्रदीपः । ( देउ मम उत्तमं बोहं ) ददातु मम मह्यं उत्तमं बोषं केवलज्ञानं । इतीष्टप्रार्थना श्रीकुन्दकुन्दाचार्याणां शास्त्रकरणस्य फलाभिलषित्वात् । अथ के ते अष्टादश दोषा इति चेदुक्ता अप्युच्यन्ते ५४६ क्षुत्पिपासाजरातङ्कजन्मान्तकभयस्मयाः । न रागद्वेषमोहाश्च यस्याप्तः सः प्रकीर्त्यते ॥ १ ॥ से सहित हैं । यहाँ सकल विशेषण देने से अर्हन्त भगवान् के शरीर संयुक्त परमात्म-पना प्रकट किया है इसीसे उनके धर्मोपदेश भी घटित हो जाता है । अर्हन्त परमेष्ठी को शरीर सहित मान लेनेसे निम्नाङ्कित कथन खण्डित हो जाता है १. यशस्तिलके । अदृष्ट - 'जिसका शरीर अदृष्ट है, जो शान्त है तथा जो परम कारण रूप है, उस शिव से परम दुर्लभ नाद रूप शास्त्र उत्पन्न हुआ है।' जिस प्रकार कछुए से रोम की, बन्ध्या से पुत्रकी, शश से सींग को, आकाश से पुष्प को और मृगमरीचिका से जल की उत्पत्ति असंगत है उसी तरह शरोर-रहित शिव से शास्त्र की उत्पत्ति असंगत है। क्योंकि, अष्टौ स्थानानि वर्णानाम् वर्णों की उत्पत्ति कण्ठ तालु आदि आठ स्थानों से होती है, इस नियम के अनुसार शब्दों की उत्पत्ति का कारण करण शरीर ही हो सकता है । अर्हन्त भगवान् तोन लोक रूपी घर को प्रकाशित करनेके लिये उत्तम दीप-स्वरूप हैं | श्री कुन्दकुन्दाचार्य शास्त्र - रचना के फलकी अभिलाषा रखते हुए इष्ट प्रार्थना करते हैं कि वे अरहन्त भगवान् मेरे लिये उत्तम ज्ञान- केवलज्ञान प्रदान करें । अब उन अठारह दोषोंको कहते हैं जो अरहन्त भगवान् में नहीं होते । क्षुत्पिपासा - भूख, प्यास, बुढ़ापा, रोग, जन्म, मरण, भय, गर्व, राग रत्नकरण्ड श्रावकाचारे । Jain Education International [ ५.१५० For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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