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________________ प्र. 1311 दुष्ट प्रणिधान किसे कहते है ? राग, द्वेष या मोह या अज्ञान मूढता से दुषित मनोवृति, दुष्टप्रणिधान कहलाता है । ऐसी मनोवृति से जिनमंदिर में जाना, परमात्मा की पूजाअर्चना करना, दुष्ट प्रणिधान आशातना है । चै.म.भा. गाथा 64 उ. प्र. 1312 अनुचित प्रवृत्ति में कौन-कौनसी आशातनाएं आती है ? जिन मंदिर में धरना देना, लांधण करके बैठना, कलह, वाद-विवाद, झगडा शोकादि करना, रोना, राजकथादि विकथा करना, गृह सम्बन्धित क्रिया-कलाप करना, गाली गलौच करना, घोडे, गाय आदि पशुओं को वहां बांधना, औषध करना इत्यादि, अनुचित प्रवृत्ति है । प्र. 1313 क्या ये आशातनाएं साधु व गृहस्थ दोनों के लिए कर्मबन्धन का कारण है ? हाँ, ये आशातनाएं दोनों के लिए भवभ्रमणा का कारण है 1 उ. उ. 364 आसायणा उ भवभमणकारणं इय विभाविडं जइणो मलमलिणत्ति न जिणमंदिरंमि निवसंति इय समओ ॥ भवभ्रमणा का कारण होने की वजह से मल-मलिन गात्र वाले मुनि भगवंत भी जिन मंदिर में निवास नही करते है । - कहा है व्यवहार भाष्य - दुब्भिगंधमलस्सावि, तणुरप्पेस ण्हाणिया । दुहावाय वहो वावि, तेणं ठंति न चेइए || स्नान करने पर भी यह शरीर दुर्गंध, मल, पसीने का घर है । मुख व अपान से सतत वायु निकलती रहती है, अत: आशातना का कारण होने से मुनिजन मंदिर में नही ठहरते है । प्र. 1314 क्या आशातना भीरु मुनिजनों को जिनमंदिर में नही जाना चाहिए ? - Jain Education International चौबीसवाँ आशातना द्वार For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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