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________________ प्र. 377 अभिषेक कहाँ से प्रारम्भ करना चाहिए ? उ. दोनों हाथों से अंजली बनाकर उसमें कलश धारण करके परमात्मा के मस्तक से अभिषेक करना चाहिए । प्र. 378 पूजा में रेशमी वस्त्र ही क्यों पहनने चाहिए ? उ. रेशम में अशुद्ध तत्त्वों को दूर (फेंकने) करने व शुद्ध तत्त्वों को ग्रहण करने की अद्भूत क्षमता होती है, जबकि अन्य वस्त्र अशुद्ध तत्त्वों को ग्रहण करते है, इसलिए पूजा में रेशमी वस्त्रों को धारण करना चाहिए । प्र. 379 वर्तमान काल में रेशम का कपड़ा हिंसा का पर्याय बना हुआ है फिर. उन वस्त्रों से परमात्मा की पूजा करना क्या उचित है ? उ. चूंकि प्राचीन समय में रेशम के कीड़े जब स्वाभाविक रुप से मर जाते थे, तब उनसे रेशम का धागा प्राप्त करके उनसे रेशमी कपडों का निर्माण किया जाता था, पर वर्तमान में तो रेशम का कपड़ा हिंसा का पर्याय बना हुआ । अतः ऐसे समय में असली रेशमी कपडों की अपेक्षा कृत्रिम रेशमी वस्त्र या अन्य वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए । है प्र. 380 पूजा के वस्त्र कैसे होने चाहिए ? उ. पूजा के वस्त्र अति उत्तम और धूले हुए क्षीरोदक की भाँति उज्ज्वल वस्त्र होने चाहिए । श्राद्ध दिनकृत्य के अनुसार 'सेयवत्थनिअंसिणो गाथा 28' पवित्र सफेद दो वस्त्र और यदि उत्तम क्षीरोदक वस्त्र न हो तो कोमल सूती वस्त्र पूजा में धारण करने चाहिए । 92 पू. हरिभद्र सूरिजी म. कृत पूजा षोडशक 915 के अनुसार 'सित वस्त्रेण शुभ वस्त्रेण च शुभमिह सितादन्यदपि पट्ट युग्मादि रक्तपीत परिगृह्यते' चतुर्थ पूजा क Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004240
Book TitleChaityavandan Bhashya Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVignanjanashreeji
PublisherJinkantisagarsuri Smarak Trust
Publication Year2013
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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