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________________ बनाने के लिए गद्य प्रधान शैली के बीचोंबीच विविध गाथाएँ भी दी हैं और कही-कहीं संस्कृत श्लोकों को रखा है। शीलांकाचार्य की वृत्ति १२८५० श्लोक प्रमाण है। इस वृत्ति में वृत्तिकार ने कहीं भी अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है। वृत्तिकार शान्तिसूरि विचारशील दार्शनिक थे इसलिए इन्हें वादी बेताल की उपाधि से अलंकृत किया गया था। यह उपाधि राजा भोज द्वारा दी गई थी। धनपाल की 'तिलकमञ्जरी' पर शान्तिसूरि ने जो टिप्पणी लिखी, वह वृत्ति के रूप में प्रचलित हुई। उत्तराध्ययन सूत्र पर प्राकृत में लिखी गई वृत्ति, जिसे शिष्यहिता वृत्ति कहा गया है। शान्तिसूरि ने अन्य कई ग्रन्थों पर वृत्ति लिखी हैं जो दार्शनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण olk विक्रम सं. की ११वीं-१२वीं शताब्दी में आचार्य द्रोण ने संस्कृत और प्राकृत में ओघ नियुक्ति और लघुभाष्य पर वृत्ति लिखी हैं जो सरल भाषा में हैं। अभयदेवसूरि और उनकी वृत्तियाँ ____ अनुपम प्रतिभा के धनी अभयदेव सूरि ने कई आगमों पर वृत्तियाँ लिखी हैं जिनमें स्थानांग, प्रश्नव्याकरण, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुतरोपपातिक दशा, विपाक औपपातिक आदि वृत्तियाँ प्राप्त हैं। स्थानांग वृत्ति को लिखते समय अभयदेव सूरि ने अपनी कठिनाइयों का उल्लेख इस प्रकार किया है १. संत सम्प्रदाय का अभाव-अर्थ बोध की सम्यक् गुरु परम्परा की . अनुपलब्धता। २. सद्-ऊह-अर्थ की आलोचनात्मक स्थिति की अप्राप्ति । ३. आगम की अनेक वाचनाएँ। ४. पुस्तकों की अशुद्धता। - ५. आगम का सूत्रात्मक होना विषय की गंभीरता का परिचायक है। ६. अर्थ-विषयक भेद।७८ मलयगिरि और उनकी वृत्तियाँ.. आचार्य मलयगिरि बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने आगमों पर महत्त्वपूर्ण वृत्तियाँ लिखी हैं जिनमें जैन सिद्धान्त के सभी पक्षों का सम्यक् विवेचन देखने को मिलता है। मलयगिरि की वृत्तियों में गणित, ज्योतिष, भूगोल और सिद्धान्त, कर्म विवेचन, तत्त्व चिन्तन आदि के विषय देखे जा सकते हैं। . मलयगिरि आगम के प्रकाण्ड पंडित थे। उन्हें शब्दानुशासन का पंडित माना गया था, क्योंकि उन्होंने शब्दानुशासन की भी रचना की थी। उनकी वृत्तियों में व्याकरण सम्बन्धी नियम एवं व्याकरण के सूत्र भी देखे जाते हैं। मलयगिरि ने १५वीं आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन - ३७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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