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________________ एक परिशीलन ३७ होना ।" कुशल चित्त की एकाग्रता या चित्त और चैतसिक धर्म का एक ही आलम्बन में सम्युक्तया स्थापन करने की प्रक्रिया का नाम 'समाधि' है । कुशल चित युक्त विपश्य - विवेक ज्ञान को 'प्रज्ञा' कहा है । 3 बौद्धों द्वारा स्वीकृत शील में पतंजलि सम्मत यम-नियम का समावेश हो जाता है । बौद्ध साहित्य में पंचशील, वैदिक परम्परा में पाँच यम और जैन परम्परा में पाँच महाव्रतों का उल्लेख मिलता है। यम और महाव्रतों के नाम एक-से हैं— १. अहिंसा, २. सत्य, ३ अस्तेय, ४. ब्रह्मचर्य, और ५. अपरिग्रह | पंचशील में प्रथम चार के नाम यही हैं, परन्तु परिग्रह के स्थान में मद्य से निवृत्त होने का उल्लेख मिलता है । समाधि में योग सूत्र द्वारा मान्य प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का समावेश हो जाता है । और जैन परम्परा में वर्णित ध्यान आदि श्राभ्यन्तर तप में प्रत्याहार आदि चार अंगों का, और बौद्ध दर्शन द्वारा मान्य समाधि का समावेश हो जाता है । मोर योग-सूत्र सम्मत तप का तीसरा नियम अनशनादि बाह्य तप में भा जाता है । और स्वाध्याय रूप श्राभ्यन्तर तप और योग सूत्र द्वारा वर्णित स्वाध्याय का अर्थ एक-सा है । बौद्ध परम्परा द्वारा मान्य प्रज्ञा और योग-सूत्र द्वारा वर्णित विवेक ख्याति में पर्याप्त अर्थ - साम्य है । इस तरह बौद्ध साहित्य में वर्णित योग अन्य परम्पराओं से कहीं शब्द से मेल खाता है, तो कहीं अर्थ से और कहीं प्रक्रिया से मिलता है । जैनागमों में योग जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है। इसके चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् १. विशुद्धिमग्ग, १, १६-२५ । २. वही, ३, २-३ वही, १४, २-३ । Jain Education International For Personal & Private Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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