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________________ (क) प्रथमा बहुवचन 1/2 कमल (नपुं.)(कमल+इं) = कमलई (प्रथमा बहुवचन) वारि (नपुं.)(वारि+इं) = वारिई (प्रथमा बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+इं) = महुइं (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया बहुवचन 2/2 (ख) कमल (नपुं.) (कमल+इं)= कमलई (द्वितीया बहुवचन) वारि (नपुं.) (वारि+इं) = वारिइं (द्वितीया बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+इं) = महुइं (द्वितीया बहुवचन) ---------------- - 23. *दीर्घ होने पर हस्व तथा हस्व होने पर दीर्घ अकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग, अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग और आकारान्त, इ-ईकारान्त उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में प्रथमा विभक्ति से संबोधन तक के प्रत्यय परे होने पर/रहने पर अंतिम स्वर दीर्घ होने पर हस्व तथा ह्रस्व होने पर दीर्घ हो जाता है। (जो प्रत्यय संज्ञा शब्दों में मिलकर रूप निर्माण करते हैं अर्थात् जो परे नहीं बने रहते वहाँ यह नियम लागू नहीं होता है) जैसे- देवु, देवि, देवें, देवेण, देवो। .. कमलु, कमलि, कमले, कमलेण। इस नियम का उपयोग इस चिह्न से संज्ञा-सर्वनाम की रूपावली में दर्शाया जायेगा। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (21) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004214
Book TitleApbhramsa Hindi Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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