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________________ द्वितीय अध्ययन - श्रमणोपासक कामदेव - भ० द्वारा कामदेव की प्रशंसा ६७ इस प्रकार तीनों उपसर्ग विस्तृत वर्णन रहित देव के वापस लौट जाने तक पूर्वोक्त रूप से यहां कह लेने चाहिये। भगवान् महावीर स्वामी ने कहा - 'हे कामदेव! इत्यादि वृत्तान्त क्या सत्य है?' कामदेव ने कहा - ‘हाँ भगवान्! सत्य है।' 'अजो! इ समणे भगवं महावीरे बहवे समणे णिगंथे य णिग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी - जइ ताव अजो! समणोवासगा गिहिणो गिहिमज्झावसंता दिव्व-माणुस्स-तिरिक्खजोणिए उवसग्गे सम्मं सहति जाव अहियासेंति, सक्का पुणाई अजो! समणेहिं णिग्गंथेहिं दुवालसंगं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं दिव्व-माणुस-तिरिक्खजोणिए सम्मं सहित्तए जाव अहियासित्तए। ___कठिन शब्दार्थ - अज्जो - आर्यों, आमंतेत्ता - आमंत्रित कर, गिहिणो - गृही, गिहमज्झावसंता - घर में रहते हुए, दिव्वमाणुसतिरिक्खजोणिए - दैविक, मानवीय और तिर्यंच संबंधी - देवकृत, मनुष्यकृत और तिर्यंचकृत, सम्मं सहति - भलीभांति सहन करते हैं, दुवालसंगं-गणिपिडगं- द्वादशांग रूप गणिपिटक का - आचार आदि बारह अंगों का, अहिजमाणेहिं - अध्ययन करने वाले। ____ भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी ने बहुत से साधु-साध्वियों को आमंत्रित कर फरमाया"हे आर्यों! गृहस्थ अवस्था में रह कर श्रावक-धर्म का पालन करते हुए भी जब दैविक, मानवीय और तिर्यंच संबंधी उपसर्गों को श्रमणोपासक सम्यक् प्रकार से सहन करते हैं, परन्तु धर्म से विचलित नहीं होते, तो साधु-साध्वियों का तो कहना ही क्या? वे तो द्वादशांगी रूप गणिपिटक के धारक होते हैं। अतः उन्हें तो दैविक, मानवीय और तिर्यंच संबंधी उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करना ही चाहिए।' तओ ते बहवे समणा णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स तहत्ति एयमढें विणएणं पडिसुणंति। - तए णं से कामदेवे समणोवासए हट्ट जाव समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ, अट्ठमादियइ, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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