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________________ श्री उपासकदशांग सूत्र कामदेव श्रमणोपासक को भगवान् के पधारने का समाचार मिला, तो उन्होंने विचार किया कि भगवान् के समीप जा कर वंदना - नमस्कार एवं पर्युपासना करके फिर पौषध पालना मेरे लिए उचित है। ऐसा विचार कर समवसरण में जाने योग्य शुद्ध वस्त्र पहने तथा अनेक मनुष्यों के समूह से घिरा हुआ अपने घर से निकला । राजमार्ग से होते हुए जहाँ पूर्णभद्र उद्यान था, वहाँ आया और (भगवती श. १२ उ. १ वर्णित ) शंख श्रावक की भाँति पर्युपासना करने लगा । भगवान् ने कामदेव और उस विशाल जनसभा को धर्म-कथा फरमाई। भगवान् द्वारा कामदेव की प्रशंसा (२३) ६६ कामदेवा इ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी - से णूणं कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतिए पाउब्भूए, तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता आसुरुत्ते रूट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं णीलुप्पल-जाव असिं गहाय तुमं एवं वयासी - हं भो कामदेवा! जाव जीवियाओ ववरोविज्जसि, तं तुमं तेणं देवेणं : एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि, एवं वण्णगरहिया तिण्णिवि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ । से णूणं कामदेवा! अट्ठे समट्ठे ? हंता, अस्थि । कठिन शब्दार्थ - आसुरुत्ते अत्यंत क्रुद्ध, जीवियाओ - जीवन से, ववरोविज्जसि - पृथक् कर दिये जाओगे, अभीए - निर्भय भाव से, वण्णगरहिया - वर्णन रहित, उवसग्गा उपसर्ग, पडिउच्चारेयव्वा - कह देने चाहिये । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कामदेव श्रमणोपासक को संबोधित कर समय एक देव तुम्हारे सामने प्रकट हुआ था । उस भावार्थ फरमाया 'हे कामदेव ! कल मध्य रात्रि देव ने विकराल पिशाच रूप धारण किया। वैसा कर अत्यंत क्रोधित हो उसने तलवार निकाल हे कामदेव ! यदि तुमने शील आदि अपने व्रत भग्न नहीं किए तो मैं तुम्हें जीवन से रहित कर दूँगा। उस देव द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर तुमने उस उपसर्ग को समभाव से सहन किया। - Jain Education International - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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