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________________ प्रथम उद्देशक - अविधि युक्त याचना का प्रायश्चित्त बिना प्रयोजन सूई आदि की याचना का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अणट्ठाए सूई जायइ जायंतं वा साइजइ॥ १९॥ जे भिक्खू अणट्ठाए पिप्पलगं जायइ जायंतं वा साइज्जइ॥ २०॥ जे भिक्खू अणट्ठाए कण्णसोहणयं जायइ जायंतं वा साइज्जइ॥ २१॥ जे भिक्खू अणट्ठाए णहच्छेयणयं जायइ जायंतं वा साइजइ॥ २२॥ कठिन शब्दार्थ - अणट्ठाए - बिना प्रयोजन, जायइ - याचना करता है। भावार्थ - १९. जो साधु बिना प्रयोजन सूई की याचना करता है या याचना करते हुए. का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। . २०. जो साधु बिना प्रयोजन कर्तरिका की याचना करता है या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। २१. जो साधु बिना प्रयोजन कर्णशोधनक की याचना करता है या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। . २२. जो साधु बिना प्रयोजन नखछेदनक की याचना करता है या याचना करते हुए का अनुमोदन करता है, उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - संयमानुरत साधु व्यवस्थित, अनुशासित एवं मर्यादित जीवन जीता है। वह वही कार्य करता है, जिसका प्रयोजन हो, संयम के हेतुभूत देह की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति में उपयोगिता हो। नीतिशास्त्र में कहा गया है - "प्रयोजनमनुद्दिश्य मंदोऽपि न प्रवर्तते।" अर्थात् प्रयोजन का उद्देश्य लिए बिना या निष्प्रयोजन रूप में मूर्ख भी किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता। ____ साधारण व्यक्ति के लिए भी जब ऐसी बात है तो साधु के लिए तो कहना ही क्या? उसकां तो प्रत्येक कार्य सार्थकता एवं सप्रयोजनता लिए हो, यह आवश्यक है। इसलिए यहाँ बिना प्रयोजन या अनावश्यक रूप में सूई आदि की याचना करना तथा वैसा करने वाले का अनुमोदन करना दोषयुक्त प्रायश्चित्त योग्य बतलाया गया है। अविधि युक्त याचना का प्रायश्चित्त जे भिक्खू अविहीए सूई जायइ जायंतं वा साइजइ॥ २३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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