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________________ ३८४ . निशीथ सूत्र वन, पर्वत या पर्वत समूहों के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है अथवा ऐसा निश्चय करते हुए का अनुमोदन करता है। २५९. जो भिक्षु ग्राम, नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, खान (स्वर्ण आदि की), संवाह, सन्निवेश इत्यादि के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है अथवा ऐसा निश्चय करते हुए का अनुमोदन करता है। २६०. जो भिक्षु ग्रामोत्सव यावत् सन्निवेश के उत्सव के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है या ऐसा निश्चय करने वाले का अनुमोदन करता है। २६१. जो भिक्षु ग्राम, नगर, खेट या कर्बट यावत् सन्निवेश में हुए वध (घात) के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है अथवा ऐसा निश्चय करने वाले का अनुमोदन करता है। २६२. जो भिक्षु ग्राम्यपथों यावत् सन्निवेश पथों के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है या ऐसा निश्चय करते हुए का अनुमोदन करता है। . २६३. जो भिक्षु अग्नि से जलते हुए ग्राम यावत् सन्निवेश के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है या ऐसा निश्चय करने वाले का अनुमोदन करता है। . २६४. जो भिक्षु अश्व, हाथी, ऊँट, वृषभ, महिष, सूअर आदि को क्रीड़ा हेतु शिक्षित करने के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मन:संकल्प करता है अथवा ऐसा निश्चय करते हुए का अनुमोदन करता है। २६५. जो भिक्षु अश्व, हाथी, ऊँट, वृषभ, महिष, सूअर आदि के युद्ध के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मनःसंकल्प करता है या ऐसा निश्चय करने वाले का अनुमोदन करता है। . २६६. जो भिक्षु गाय, अश्व, हाथी आदि के समूह स्थानों के विषय में (प्रशंसा-निंदा मूलक) शब्द श्रवण की इच्छा से मन:संकल्प करता है अथवा ऐसा निश्चय करते हुए का अनुमोदन करता है। २६७. जो भिक्षु राज्याभिषेक के स्थान, कथास्थान, मान-उन्मान-प्रमाण के स्थान या कुशलतापूर्वक जोर से बजाए जाते हुए वाद्य-तंत्री-तल-ताल-त्रुटित तथा तदनुरूप नृत्य, गायन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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