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________________ ३४२ निशीथ सूत्र ............................................ इस तरह निशीथ अध्ययन (निशीथ सूत्र) में पंचदश उद्देशक परिसमाप्त हुआ। विवेचन - भिक्षु यदि विभूषा के लिए, शरीर आदि की शोभा के लिए अर्थात् अपने को सुन्दर दिखाने के लिए अथवा निष्प्रयोजन किसी उपकरण को धारण करता है तो उसे १५७ वें सूत्र के अनुसार प्रायश्चित्त आता है। १५८ वें सूत्र में विभूषावृत्ति से अर्थात् सुन्दर दिखने के लिए यदि भिक्षु वस्त्रादि उपकरणों को धोवे या सुसज्जित करे तो उसका प्रायश्चित्त कहा है। इन दोनों सूत्रों से यह भी स्पष्ट है कि भिक्षु बिना विभूषा वृत्ति के किसी प्रायोजन से वस्त्रादि उपकरण रखे या धोवे तो सूत्रोक्त प्रायश्चित नहीं आता है अर्थात् भिक्षु संयम के आवश्यक उपकरण रख सकता है और उन्हें आवश्यकतानुसार धो भी सकता है, किन्तु धोने में विभूषा भाव नहीं होना चाहिए। ____यदि पूर्ण रूप से भिक्षु को वस्त्र आदि धोना अकल्पनीय होता तो उसका प्रायश्चित्त कथन अलग प्रकार से होता किन्तु सूत्र में विभूषावृत्ति से ही धोने का प्रायश्चित्त कहा है। ___ आगम के अनेक स्थलों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मचर्य के लिए विभूषा वृत्ति सर्वथा अहितकर है, कर्मबंध का कारण है, प्रायश्चित्त के योग्य है। अतः भिक्षु विभूषां के संकल्प का त्याग करे अर्थात् शारीरिक श्रृंगार करने का एवं उपकरणों को सुन्दर दिखाने का प्रयत्न न करे। उपकरणों को संयम की और शरीर की सुरक्षा के लिए ही धारण करे एवं आवश्यक होने पर ही उनका प्रक्षालन करे। . ॥ इति निशीथ सूत्र का पंचदश उद्देशक समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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