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________________ निशीथ सूत्र वेश रखते हुए भी जो साधुत्व में आचरणशील नहीं हैं, संयम पालन में अवसाद युक्त, शिथिल बने रहते हैं, तत्परता पूर्वक यथावत् पालन नहीं करते, सदैव एक ही घर से भोजन प्राप्त कर आहार ग्रहण करते हैं, आसक्ति युक्त होते हैं, अच्छा आहार एवं यशादि प्राप्त करने हेतु जो सुंदर रूप में कथाएं कहते हैं, शुभाशुभ फल कथन रूप सावद्य कार्यों में निरत रहते हैं, अपने वस्त्र, पात्रादि उपधि में ममत्व युक्त होते हैं, भौतिक लोभवश गृहस्थों के सावद्य कार्यों में परामर्शक होते हैं। ऐसे व्यक्ति साधुत्व की गरिमा को मिटाते हैं। वे धार्मिक दृष्टि से वंदना के पात्र नहीं होते। वैसे जनों को वंदन, प्रशंसन करने से इन अयोग्यजनों की प्रतिष्ठा बढ़ती है, जिससे अनाचरण का पोषण, अनुमोदन होता है। वस्तुतः प्रतिष्ठा तो उनकी बढ़नी चाहिए जो त्याग, वैराग्यमूलक, संयमानुप्राणित जीवन विद्या के संवाहक हों । ३०२ निशीथ भाष्य में वंदना के अयोग्यजनों का वर्णन करते हुए लिखा है मूलगुणे उत्तरगुणे, संथरमाणा विजे पमाति । ते होतऽवंदणिञ्जा, तट्ठाणारोवणा चउरो ॥४३६७ ॥ सक्षम होते हुए भी जो चारित्र के मूल गुणों या उत्तरगुणों के परिपालन में प्रमाद करते हैं, संयम में दोष लगाते हैं, पार्श्वस्थ आदि स्थानों का सेवन करते हैं, वे वंदना के योग्य नहीं है। इस कसौटी पर कसने से सूत्रोक्त सभी व्यक्ति अवंदनीय की श्रेणी में आते हैं। जो व्यक्ति नम्रता, मृदुभाषिता, वाग्मिता, सद्व्यावहारिकता, मेधाविता आदि में निपुण हों किन्तु चारित्र गुणों में हीन हो तो इन सभी योग्यताओं के बावजूद वह धार्मिक दृष्टि से वंदनीय नहीं होता । धातृपिंडादि सेवन करने का प्रायश्चित जे भिक्खू धा(इ)ईपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ ॥ ६४॥ जे भिक्खू दूईपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ ॥ ६५ ॥ जे भिक्खू णिमित्तपिंडं भुंजइ भुंजंतं वा साइज्जइ ॥ ६६ ॥ Jain Education International निशीथ भाष्य, गाथा - ४३६७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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