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________________ एकादश उद्देशक - बाल मरण प्रशंसा विषयक प्रायश्चित्त २५३ वा जलणपक्खंदणाणि वा विसभक्खणाणि वा सत्थोपाडणाणि वा वलयमरणाणि वा वसट्टाणि वा तब्भवाणि वा अंतोसल्लाणि वा वेहाणसाणि वा गिद्धपिट्ठाणि वा जाव अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि बालमरणाणि पसंसइ पसंसंतं वा साइजइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं॥ १५॥ ॥णिसीहऽज्झयणे एक्कारसमो उद्देसो समत्तो॥११॥ कठिन शब्दार्थ - गिरिपडणाणि - गिरिपतन - पर्वत की चोटी से गिरना अथवा ऐसे उच्च स्थान से गिरना जहाँ से गिरता हुआ व्यक्ति दिख सकता हो, मरुपडणाणि - मरुपतनमरुस्थलीय ऊषर भूमि में या बालू भूमि में गिर पड़ना अथवा ऐसे स्थान से गिरना जहाँ से गिरता हुआ व्यक्ति दिखाई न दे, भिगुपडणाणि - भृगुपतन - नदी के तट से (नदी में) गिरना अथवा खड्डे आदि में गिरना, तरुपडणाणि - तरुपतन - पेड़ की शाखा से गिरना, गिरिपक्खंदणाणि - गिरिप्रस्खंदन - पर्वत से छलांग लगाकर गिरना, मरुपक्खंदणाणि - मरुप्रस्खंदन - मरुभूमि में ऊँचे स्थान से कूदकर गिरना, भिगुपक्खंदणाणि - भृगुप्रस्खंदन - नदी तट अथवा खड्डे आदि में छलांग लगाकर कूदना, तरुपक्खंदणाणि - तरुप्रस्खंदन - वृक्ष से कूदकर गिरना, जलपवेसाणि - जलप्रवेश - नदी, कूप, सरोवर आदि में प्रवेश, जलणपवेसाणि - ज्वलनप्रवेश - अग्नि में प्रवेश, जलपक्खंदणाणि - जलप्रस्खंदन - छलांग लगाकर जल में गिरना, जलणपक्खंदणाणि - ज्वलन प्रस्खंदन - छलांग लगाकर आग में कूद पड़ना, विसभक्खणाणि - विषभक्षण - जहर खाना, सत्थोपाडणाणि - . शस्त्रोत्पातन - उच्च स्थान से शस्त्र (तलवार) आदि पर गिर पड़ना, वलयमरणाणि - वलयमरण - गले में वस्त्र, रस्सी आदि से फाँसी लगाकर मरना, वसट्टाणि - वशा-मरण - विषयभोगों में अत्यधिक आसक्तिवश उनकी अप्राप्ति में दुःखित, व्यथित होकर मरना, तब्भवाणि - तद्भवमरण - पुनः उसी भव को प्राप्त करने के निदान द्वारा मरण, अंतोसल्लाणि - अन्तोशल्यमरण - तीर-भाले आदि की तीक्ष्ण नोक से मरना या दोषों के अनालोचन से पश्चात्तापपूर्वक मरण, वेहाणसाणि - आकाश में विस्तीर्ण वृक्ष आदि की शाखा से लटककर प्राणान्त करना, गिद्धपिट्ठाणि - गृद्ध आदि से शरीर को नुचवाकर, भक्षण करवाकर मरना, पसंसइ - प्रशंसा करता है। .. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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