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________________ २५२ निशीथ सूत्र संबद्ध हैं, यों सोचते हुए इनको आहार-पानी से पृथक् मानकर कोई भिक्षु रात को इन्हें अपने पास रख न ले, इनका सेवन न कर ले, इस आशंका से इस सूत्र में इन्हें रात्रि में रखना, इनका सेवन करना - चखना खाना प्रायश्चित्त योग्य बताना आवश्यक माना गया। ___ खाद्य, पेय, लेह्य, चळ, चौष्य, आस्वाद्य आदि सभी पदार्थ भोज्यत्व के अन्तर्गत हैं। केवल क्षुधा-पिपासा-निवारण तक ही भोज्यत्व की सीमा नहीं है। पाचन-आस्वादन आदि से संबद्ध पदार्थ भी तो भोज्यादि विषयक विशेष लिप्सा से पृथक् नहीं हैं। यहाँ बिर्ड और उद्भिद् - इन दो प्रकार के नमक का उल्लेख हुआ है। प्राचीन व्याख्याओं के अनुसार जिस स्थान या क्षेत्र में नमक पैदा नहीं होता वहाँ ऊपर - अनुपजाऊ मिट्टी के या बालु के कणों को एक विशेष प्रक्रिया से पकाकर जो पदार्थ तैयार किया जाता है, उसे बिड़ नमक कहा जाता है। जो स्वाभाविक रूप में उत्पन्न होता है, पर्वतीय या पथरीले आदि स्थान में प्राप्त होता है, वह उब्भियं - उद्भिद् नमक कहा जाता है। अथवा उब्भियं वा लोणं - अन्य शस्त्रपरिणत नमक। ये दोनों प्रकार के नमक अचित्त हैं। आगम में सचित्त नमक के साथ इन दो प्रकार के नमक का नाम नहीं आता है। दशवैकालिक अ. ३ गा. ८ में ६ प्रकार के सचित्त नमक ग्रहण करने व खाने को अनाचार कहा है। यथा - . "सोवच्चले सिंधवे लोणे, रोमालोणे य आमए। सामुद्दे पंसुखारे य, काला लोणे य आमए॥ ८॥" ___आचारांग श्रु. २ अ. १ उ. १० में इन दो प्रकार के नमक को खाने का विधान है। दशवैकालिक अ. ६ गा. १८ में इन दो के संग्रह का निषेध है और प्रस्तुत सूत्र में रात्रि में रखे हुए को खाने का प्रायश्चित्त है। इन स्थलों के वर्णन से यही स्पष्ट होता है कि उपरोक्त ६ प्रकार के सचित्त नमक में से कोई नमक अग्नि पक्व हो तो उसे बिडललण कहते हैं और अन्य शस्त्रपरिणत हो तो उसे उद्भिद् कहते हैं। बाल मरण प्रशंसा विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू गिरिपडणाणि वा मरुपडणाणि वा भिगपडणाणि वा तरुपडणाणि वा गिरिपक्खंदणाणि वा मरुपक्खंदणाणि वा भिगुपक्खंदणाणि वा तरुपक्खंदणाणि वा जलपवेसाणि वा जलणपवेसाणि वा जलपक्खंदणाणि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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