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________________ २३८ निशीथ सूत्र आध्यात्मिक रसानुभूति में इतना तन्मय होता है कि बाह्य प्रतिकूलता, अनुकूलता आदि का उसे कोई भान ही नहीं रहता। भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस, चोर, दस्यु, सर्प, सिंह, व्याघ्र आदि से जनित भयोत्पादक. स्थितियों से भिक्षु कभी डरता नहीं। जिसको अपने साधनामय पावन पथ पर गतिशील रहते हुए मृत्यु तक का भय नहीं होता, वह क्यों, कब, किससे डरे? किन्तु जब मन में दैहिक मोह का भाव उभर आता है, तब वह उपर्युक्त स्थितियों में भय का अनुभव करने लगता है, जो आत्मदुर्बलता का सूचक है। उसे वैसी किसी भी भयोत्पादक स्थिति में अपने आपको स्थिर एवं सुदृढ बनाए रखना चाहिए, क्योंकि ये विपरीत स्थितियाँ उसकी आत्मा का तो कुछ भी बुरा नहीं कर सकती। ऐसी स्थितियों में भयान्वित हो जाना साधु के लिए दोषपूर्ण है, प्रायश्चित्त योग्य है। निशीथ भाष्य में इस संदर्भ में एक विशेष सूचना की गई है - जब उपर्युक्त भयानक, भयजनक स्थितियों का अस्तित्व हो, अर्थात् ये विद्यमान हों, समक्ष हों तो उनसे यदि भिक्षु अपने आपको भयभीत बनाता है तो उसे लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। यदि वैसी स्थितियाँ वास्तव में न हों, केवल तद्विषयक आशंकावश भिक्षु यदि अपने को भयभीत बना ले तो उसे गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। उपर्युक्त भयोत्पादक स्थितियों से दूसरों में भय उपजाना भी दोषयुक्त है, प्रायश्चित्त योग्य है। वैसे भयावह प्रसंग में औरों को सावधान करना, जागरूक करना दोष नहीं है। किन्तु आतुरता, आकुलता या कुतूहलवश औरों में भय उत्पन्न करना दोषयुक्त है। भयोद्विग्न व्यक्ति अस्थिर एवं धृतिविहीन हो जाता है। उसे अपने आपे का ध्यान नहीं रहता है। वैसी मनोदशा में वह अकरणीय कार्य भी कर बैठता है, आत्म-परिणामों में अस्थिरता आने से भिक्षु की धार्मिक वृत्ति व्याहत होती है, जिससे असंयताचरण भी आशंकित है। स्व-पर विस्मापन विषयक प्रायश्चित्त जे भिक्खू अप्पाणं विम्हावेइ विम्हावेंतं वा साइजइ।। ६९॥ जे भिक्खू परं विम्हावेइ विम्हावेंतं वा साइज्जइ॥ ७०॥ कठिन शब्दार्थ - विम्हावेइ - विस्मापित करता है - विस्मित या आश्चर्यान्वित बनाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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