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________________ दशम उद्देशक - वर्तमान-भविष्य विषयक निमित्त कथन प्रायश्चित्त २०७ क्रिया या कर्म किया जाता है, उसे आधाकर्म कहा जाता है। उस पाकक्रिया से निर्मित संबद्ध आहार भी आधाकर्म, आधाकर्मिक या आधाकर्मी के रूप में अभिहित हुआ है। ... इस सूत्र में यद्यपि केवल आधाकर्मी आहार सेवन के ही प्रायश्चित्त का निरूपण हुआ है। यहाँ वस्त्र, पात्रादि उपधि तथा शय्या भी उपलक्षित हैं। वे भी यदि साधु को उद्दिष्ट कर तैयार किए गए हों तो उन्हें गृहीत करना, उनका सेवन करना भी आधाकर्मी आहार की तरह प्रायश्चित्त योग्य है। वर्तमान-भविष्य विषयक निमित्त कथन प्रायश्चित्त . जे भिक्खू पडुप्पण्णं णिमित्तं वागरेइ वागरेंतं वा साइजइ॥७॥ जे भिक्खू अणागयं णिमित्तं वागरेइ वागरेंतं वा साइजइ॥८॥ कठिन शब्दार्थ - णिमित्तं - सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, जीवन-मरण विषयक वृत्तान्त, पडुप्पण्णं - प्रत्युत्पन्न - वर्तमान कालीन, वागरेइ - व्याकृत - प्रकाशित करता है - कथन करता है, अणागयं - अनागत - भविष्यकालीन। भावार्थ - ७. जो भिक्षु वर्तमानकाल में संभूयमान या घटित हो रही घटनाएँ व्यक्त करता है - प्रकाशित करता है या बतलाता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ८. जो भिक्षु भविष्यकाल में होने वाले वृत्तान्तों - घटनाओं का प्रकाशन, प्रकटीकरण या कथन करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - ज्योतिष, हस्तरेखा, पादरेखा, ललाटरेखा, देह के चिन्ह विशेष, जन्मकुण्डली, प्रश्नज्योतिष, देव सिद्धि इत्यादि कारणों से वर्तमान, भविष्य के वृत्तान्त या घटनाओं का कथन यहाँ निमित्त शब्द द्वारा अभिहित हुआ है। - इन-इन विषयों पर प्राकृत, संस्कृत आदि में अनेक ग्रन्थ प्राचीनकाल में रचे गए। उनमें से कतिपय आज भी उपलब्ध हैं। निमित्त कथन के मुख्य छह विषय हैं : १. सुख, २. दुःख, ३. लाभ, ४. अलाभ, ५. जीवन तथा ६. मृत्यु। इनके कारण निमित्त छह प्रकार का कहा गया है। - भिक्षु के लिए निमित्त कथन सर्वथा निषिद्ध है। कीर्ति, प्रभाव, प्रतिष्ठा, उत्तम आहार, वस्त्रादि की प्राप्ति हेतु यदि कोई भिक्षु किसी के वर्तमान के वृत्तान्त बताए, अनागत के लिए भविष्यवाणी करे तो दोषपूर्ण है, अत एव प्रायश्चित्त योग्य है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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