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________________ निशीथ सूत्र जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियांणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहतं वा साइज्जइ ॥ १४ ॥ भिक्खू रणो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णइजत्तासंपट्टिबाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ॥ १५ ॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं णइजत्तापडिणियत्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ॥ १६॥ जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गिरिजत्तासंपट्ठियाणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ॥ १७ ॥ जे भिक्खू रणो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गिरिजत्ता -. पडिणियत्ताणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ पडिग्गाहें तं वा साइज्जइ ॥ १८ ॥ कठिन शब्दार्थ - जत्तासंपट्ठियाणं यात्रासंस्थित - युद्ध आदि हेतु यात्रा पर जाते हुए, जत्तापडिणियत्ताणं - यात्राप्रतिनिवृत्त - युद्ध आदि की यात्रा से वापस लौटे हुए, णइजत्तासंपट्ठियाणं - नदी - यात्रा संप्रस्थित नदी यात्रार्थ प्रस्थान किए हुए - रवाना हुए, इजत्तापडिणियत्ताणं - नदी यात्रा से वापस लौटे हुए, गिरिजत्तासंपट्ठियाणं - पर्वतीय यात्रा पर संप्रस्थित, गिरिजत्तपडिणियत्ताणं - पर्वतीय यात्रा से प्रति निवृत्त । भावार्थ - १३. जो भिक्षु पर राज्य विजयार्थ आदि हेतु, युद्ध हेतु प्रस्थान किए हुए क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृ वंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के यहाँ से अशन-पान-खाद्यस्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है । १४. जो भिक्षु युद्ध आदि मूलक बहिर्यात्रा से वापस लौटे हुए क्षत्रियकुलोत्पन्न, शुद्ध मातृ-पितृवंशीय एवं मूर्धाभिषिक्त राजा के यहाँ से अशन-पान - खाद्य - स्वाद्य रूप आहार ग्रहण करता है या ग्रहण करते हुए का अनुमोदन करता है । १९२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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