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________________ १९० निशीथ सूत्र राजाओं के सम्मान में दिए जाने वाले भोजों में विविध प्रकार के स्वादिष्ट, पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते थे। उस प्रकार का कोई भोज समारोह हो तब संयोगवश भिक्षु उसे देखे तथा उस समारोह के समाप्त हो जाने के पूर्व ही वहाँ से आहार ग्रहण करे तो यह दोषयुक्त है। __ उत्तमोत्तम भोज्य सामग्री को देखकर सामान्यजनों के मन में उसके प्रति अभीप्सा या लौलुपता उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि रसनेन्द्रिय को जीत पाना बहुत दुष्कर, है। किन्तु त्यागवैराग्यपूर्ण, संयम-जीवितव्य के संवाहक भिक्षु के मन में आहार के प्रति कभी लोलुपता नहीं होती, क्योंकि वह जानता है कि आहार तो देह को चलाने का मात्र एक साधन है। वह केवल शुद्ध एवं सादा हो, जिससे शरीर यात्रा का निर्वाह होता रहे। . मानवीय दुर्बलतावश भिक्षु के मन में स्वादिष्ट, पौष्टिक आहार प्राप्त करने की कभी उत्कण्ठा, अभिलाषा न हो एतदर्थ यह सूत्र प्रेरणा प्रदान करता है। राजा के विश्रामस्थल (छावनी) आदि में ठहरने का प्रायश्चित्त ____ अह पुण एवं जाणेजा 'इहज रायखत्तिए परिवुसिए' जे भिक्खू ताए गिहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए विहारं वा करेई सज्झायं वा करेइ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेइ उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ अण्णयरं वा अणारियं मेहुणं अस्समणपाउग्गं कहं कहेइ कहेंतं वा साइज्जइ॥ १२॥ कठिन शब्दार्थ - अह - अथ - इसके अनन्तर, पुण - पुनः - फिर, एवं - इस प्रकार; जाणेज्जा - जाने, इह - यहाँ, अज्ज - आज, रायखत्तिए - क्षत्रियवंशीय राजा, परिवुसिए - पर्युषित - प्रवास - निवास करता है - ठहरा हुआ है, ताए - उस, गिहाए - घर से, पएसाए - प्रदेश - स्थान से या छावनी से, उवासंतराए - अवकाशान्तर - तत् समीपवर्ती शुद्ध स्थान में। भावार्थ - १२. जब यह जान ले या ज्ञात हो जाए कि यहाँ आज क्षत्रियवंशोत्पन्न राजा ठहरा हुआ है तो जो भिक्षु उस गृह से - जिसमें राजा रुका हो, उस भवन में (उस भवन के किसी विभाग या प्रकोष्ठ में), उस प्रदेश या छावनी से (छावनी के किसी भाग में) एवं उसके समीपवर्ती (निरवद्य) स्थान में ठहरता है, स्वाध्याय करता है, अशन-पान-खाद्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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