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________________ सप्तम उद्देशक - पशु-पक्षी के अंगसंचालन आदि विषयक प्रायश्चित्त १६१ कठिन शब्दार्थ - अमणुण्णाई - अमनोज्ञ - मन को अप्रिय लगने वाले, पोग्गलाइंपुद्गल, मणुण्णाई - मनोज्ञ - मन को प्रिय लगने वाले, उवकिरइ - उपकिरण करता है - प्रक्षिप्त करता है। भावार्थ - ८३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन करने के अभिप्राय से अमनोज्ञ पुद्गलों को निकालता है - हटाता है या दूर करता है अथवा वैसा करते हुए का अनुमोदन करता है। ८४. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन करने के अभिप्राय से मनोज्ञ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है अथवा प्रक्षेप करते हुए का अनुमोदन करता है। ऐसा करने वाले भिक्षु को गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। विवेचन - जब मन में काम-वासना जागृत होती है तो काममोहित व्यक्ति अपने आपको, भोग्या नारी को तथा भवन, वस्त्र आदि उपकरणों की असुन्दरता को मिटाने के लिए अमनोज्ञ पुद्गलों को असुन्दर, भौतिक पदार्थों को दूर करता है अर्थात् अपने देह, स्थान और वहाँ विद्यमान वस्तुओं की अमनोज्ञता - असुन्दरता को हटाता है। सूत्र में इसे पुद्गल निर्हरण शब्द द्वारा अभिहित किया गया है। तदर्थ व्यक्ति अपने शरीर, स्थान, वस्त्र आदि उपकरण इन सभी को मनोज्ञ - सुन्दर, सुसज्ज बनाने का उपक्रम करता है। इसके लिए पुद्गलों का उपकिरण - प्रक्षेपण पद आया है। साधु के लिए ऐसा करना सर्वथा दोष पूर्ण है। - पशु-पक्षी के अंगसंचालन आदि विषयक प्रायश्चित्त - जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजाई वा पक्खिजाई वा पायंसि वा पक्खंसि वा पुंछंसि वा सीसंमि वा गहाय (उज्जिहइ वा पव्विहइ वा) संचालेइ (उजिहेंतं वा पव्विहेंतं वा) संचालेंतं वा साइज्जइ॥८५॥ जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजायं वा पक्खिजायं वा सोयंसि कटुं वा किलिंचं वा अंगुलियं वा सलागं वा अणुप्पवेसित्ता संचालेइ संचालेंतं वा साइज्जइ॥८६॥ . जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं पसुजायं वा पक्खिजायं वा अयमित्थित्तिकट्ट आलिंगेज वा परिस्सएज वा परिचुंबेज वा विच्छेदेज वा आलिंगंतं वा परिस्सयंतं वा परिचुंबतं वा विच्छेदंतं वा साइजइ॥ ८७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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