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________________ ११६ - निशीथ सूत्र विवेचन - वृक्ष के मूल की निकटवर्ती भूमि वृक्ष के साथ संलग्नता के कारण सचित्त होती है। निशीथ चूर्णि में उसकी सीमा का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जिस वृक्ष का स्कन्ध - तना हाथी के पैर जितना मोटा हो, उसके चारों ओर की एक-एक हाथ प्रमाण भूमि सचित्त होती है। वृक्ष का तना उससे अधिक मोटा हो तो उस मोटेपन के अनुपात से सचित्त भूमि का प्रमाण भी बढ़ जाता है अर्थात् जितना-जितना मोटापन अधिक होता है, उतना-उतना सचित्तता का प्रमाण बढ़ता जाता है। ___सचित्त भूमि में स्थित होना - खड़ा होना, बैठना इत्यादि क्रियाएँ प्राणातिपात विरमण की दृष्टि से दोष युक्त हैं, क्योंकि वैसा करने से पृथ्वीकाय, वनस्पतिकाय आदि जीवों की विराधना होती है। ___इन सूत्रों में शयन, त्वग्वर्तन, कायोत्सर्ग, आहार क्रिया, उच्चार-प्रस्रवण परिष्ठापन, स्वाध्याय, उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा, वाचना देना, लेना, पुनरावर्तन करना - सचित्त वृक्ष की निकटवर्ती भूमि में इन उपक्रमों को करना दोषयुक्त है, अत एव वैसा करने वाला प्रायश्चित्त का भागी होता है, ऐसा इन सूत्रों में वर्णन हुआ है। ___यद्यपि वृक्ष की निकटवर्ती भूमि में स्थित होने के अन्तर्गत संक्षेप में वहाँ किए जाने वाले कार्यों का समावेश हो जाता है, किन्तु विस्तृत निरूपण की दृष्टि से यहाँ उन कार्यों का, जो भिक्षु-जीवन के साथ विशेष रूप से संबंधित हैं, पृथक्-पृथक् उल्लेख किया गया है, ताकि भिक्षु असंदिग्ध रूप में अपनी समाचारी का अनुवर्तन करता रहे। यहाँ आया हुआ 'उदेस' शब्द चूर्णिकार के अनुसार आगमों के पठित, गृहीत मूल पाठ के अतिरिक्त नूतन मूल पाठ की वाचना देना है। _ 'समुद्देस' शब्द का तात्पर्य वाचना में दिए गए आगम पाठ को विशेष रूप से शुद्ध एवं सुस्थिर कराना है। ___अनुज्ञा' देने का अर्थ, जो भिक्षु वाचना लेकर आगम पाठ को शुद्ध रूप में भलीभाँति कण्ठस्थ स्वायत्त कर लेता है, उसे दूसरों को वाचना देने की आज्ञा देना है। यहाँ आया हुआ 'वायणा' - वाचना शब्द सूत्रार्थ को गृहीत कराने के अर्थ में है। यहाँ जो ‘णिसीहियं' पद का प्रयोग हुआ है, प्राकृत व्याकरण के अनुसार संस्कृत में उसके निषीदन और नैषधिक दो रूप बनते हैं। निषीदन का अर्थ बैठना है और नैषधिक का अर्थ नैषधिकी क्रिया करना है। दोनों ही अर्थ यहाँ प्रसंगानुसार असंगत नहीं हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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