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________________ ८२ निशीथ सूत्र . मरुक नामक वनस्पति विशेष के निकट, इक्खुवर्णसि - गन्ने के पौधों में या उनके पास, सालिवणंसि - शालि नामक चावल विशेष के पौधों के समीप, कुसुंभवणंसि - कुसुम्ब नामक पौधों के वन में - समूह में, कप्पासवणंसि - कपास पादप-समूह के समीप अथवा कपास के खेत में, असोगवणंसि - अशोक नामक वृक्षों के वन में, सत्तिवण्णवणंसि - सप्तपर्ण नामक वृक्षों के वन में, चंपगवणंसि - चंपक पादपों के वन में, चूयवणंसि - आमों के बगीचे में, तहप्पगारेसु - तथाप्रकार के - उस तरह के, पत्तोवएसु - पत्रोपेत - पतों सहित, पुष्फोवएसु - पुष्पोपेत - फूलों सहित, फलोवएसु - फलोपेत- फलों सहित, छाओवएसु - छायोपेत - छाया युक्त अथवा (बीओवएसु - बीजों आदि से युक्त)। भावार्थ - ७३. जो भिक्षु गृह, गृहमुख, गृहद्वार, गृह-प्रतिद्वार, गृह के अग्रभाग, गृह' के प्रांगण, गृह के समीपवर्ती स्थान - इनमें से किसी में मल-मूत्र परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। .. ७४. जो भिक्षु मृतक गृह, दाह किए गए मृतक के भस्म युक्त स्थान, मृतक-स्तूप, मृतक-आश्रित-स्थान, मृतक-लयन, मृतक-स्थण्डिल, मृतक-वर्चस् - इनमें से किसी में मलमूत्र परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ७५. जो भिक्षु कोयले बनाने का स्थान, क्षार-स्थान, गाय आदि पशुओं के डाम देने का स्थान, तुष जलाने का स्थान, भूसा जलाने का स्थान - इनमें से किसी में मल-मूत्र परठता है . अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ___७६. जो भिक्षु नवनिर्मित गोलेहनिका, नवनिर्मित मिट्टी की खानें - इनमें से किसी में, जिनका मल-मूत्र त्याग हेतु प्रयोग होता हो या नहीं होता हो, उच्चार-प्रस्रवण परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। - ७७. जो भिक्षु सचित्त जल मिश्रित कर्दम बहुल स्थान, कीचड़, लीलन-फूलन - इनमें से किसी में उच्चार-प्रस्रवण परठता है अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित आता है। ७८. जो भिक्षु गूलर, बरगद, पीपल - इन वृक्षों में से किसी के सन्निकट मल-मूत्र परठता अथवा परठते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। ... ७५, जो भिक्षु पत्तेदार शाक (साग-सब्जी), अन्य शाक - सब्जियाँ, मूली, धनियाँ, क्षार (खार), जीरा, दमनक, मरुक - इनके पौधों में से किसी के सन्निकट मल-मूत्र परठता है अथवा पटते हुए का अनुमोदन करता है, उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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