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________________ धोकर रखने, औपग्रहिक उपकरणों को यथासमय गृहस्थ को न लौटाने, औद्देशिक उद्दिष्ट शय्या का उपयोग करने इत्यादि प्रवृत्तियों का निषेध किया गया है। इनका आचरण करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त बतलाया है। छट्ठा उद्देशक - इस उद्देशक में कुशील सेवन की भावना से किसी स्त्री का अनुनय विनय करने, हस्तकर्म करने, पौष्टिक सरस आहार करने आदि सभी प्रवृत्तियाँ जो कुशील सेवन में सहायक होती उनका निषेध किया गया है। इन सब प्रवृत्तियों के सेवन पर गुरुचौमासी प्रायश्चित्त का विधान है। [10] सातवाँ उद्देशक - इस उद्देशक में भी छठे उद्देशक की भाँति कामेच्छा की भावना से प्रेरित होकर विविध प्रकार की मालाएं, कड़े आदि बनाना, पहनना स्त्री के अंगोपांग का संचालन करना, इसके अलावा काम वासना के वशीभूत होकर पशु पक्षियों, अंगोपांग का स्पर्श करना आदि सभी प्रवृत्तियाँ संयमी जीवन नष्ट भ्रष्ट करने वाली है । अत एव इनका निषेध किया है। इन प्रवृत्तियों का सेवन करने पर गुरु चौमासी प्रायश्चित्त का विधान है। आठवाँ उद्देशक आगम में संयमी साधक के लिए नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य महाव्रत पालने का विधान है । अतएव उस धर्मशाला, उद्यान, शून्यगृह आदि किसी भी स्थान पर एकाकी साधु को एकाकी महिला के साथ रहना, आहार स्वाध्याय आदि करना, शौच आदि साथ जाना, रात्रि में स्त्री परिषद् में अपरिमित कथा करना, साध्वियों के साथ-साथ विहार करना यानी सभी तरह से साधक को स्त्री संसर्ग से बचने का निषेध किया है। इसका कारण स्त्रियों का अधिक सम्पर्क संयम के लिए घातक है। इसके अलावा राजपिण्ड ग्रहण करने का निषेध भी किया गया है। इन स्थानों का सेवन करने पर साधु को चातुर्मासिक प्रायश्चित्त बतलाया गया है। - Jain Education International नौवां उद्देशक इस उद्देशक में राज पिण्ड ग्रहण न करने के साथ-साथ राजा के अन्तःपुर में भी प्रवेश का निषेध किया है। क्योंकि अन्त: पुर में एक से एक बढ़ कर सुन्दर स्त्रियाँ रहती है। साथ ही अन्तःपुर की साज सज्जा भी मोहक होती है । अन्तःपुर में तो मात्र उनके सगे सम्बन्धी, नौकर-चाकर के अलावा अन्य का प्रवेश प्रायः निषेध होता है । साधु के अन्तःपुर में जाने पर राजा के मन में कुशंकाएं भी हो सकती। इस प्रकार अनेक कारणों से संयमी साधक के लिए अन्तःपुर में जाने का निषेध किया है। इसकी अवेहलना करने पर गुरु चौमासी प्रायश्चित्त का विधान है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
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