SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [9] रखवाना, स्थान को उच्चा करवाना, नाली आदि बनवाना। सूई, कैंची, नखछेदनक, कर्णशोधनक को तेज कराना, अविधि अथवा निष्प्रयोजन इनकी याचना करना। अपने नेश्राय के पात्र-वस्त्र आदि गृहस्थ से ठीक करवाने का निषेध किया गया है। इन स्थानों का सेवन करने पर प्रायश्चित्त का विधान है। दूसरा उद्देशक - इस उद्देशक में सर्वप्रथम पादपोंछन का वर्णन किया गया है, जो रजोहरण से भिन्न, एक एक कम्बल का टुकड़ा होता जो मात्र पैर आदि पोंछने में काम में लिया जा सकता है। इसे लकड़ी की डंडी के बांध कर भी उपयोग में लिया जा सकता है। इसे अधिक से अधिक डेढ़ माह तक रखा जा सकता है। तत्पश्चात् इत्रादि सुगन्धित पदार्थों को संघने, कठोर भाषा बोलने, अदत्त वस्तु ग्रहण करने, शरीर को सजाने-संवारे, बहुमूल्य वस्तुओं को धारण करने, मनोज्ञ आहार को ग्रहण करने अमनोज्ञ को परठने, शय्या-संस्तारक अविधि से लेने आदि का निषेध किया गया है। इन स्थानों का उल्लंघन करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त बतलाया है। . तीसरा उद्देशक - ‘इस उद्देशक में धर्मशाला, मुसाफिर खाना, आरामगृह आदि स्थानों में आहार आदि उच्चस्वर से मांगने, गृहस्वामी के मना करने पर पुनः पुनः उसके घर आहारादि के लिए जाने, सामूहिक भोज में आहारादि ग्रहण करने, पैरों को धोने, विहार करते ... • हुए साधु को मस्तक ढंकने, बाग-बगीचे, श्मशान भूमि धूप रहित स्थान पर मल विसर्जन आदि का निषेध किया है। इनका उल्लंघन करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त बतलाया गया है। . चौथा उद्देशक - इस उद्देशक में राजा, नगर रक्षक, ग्राम रक्षक को वश में करने एवं उसके गुणानुवाद करने, नित्यप्रति विगयों के सेवन करने, अविधि से साध्वियों के उपाश्रय में प्रवेश करने, नवीन कलह उत्पन्न करने अथवा उपशान्त कलह को पुनः जागृत करने, ठहाका मार कर हंसना, संध्या के चतुर्थ प्रहर में उच्चार प्रश्रवण भूमि की प्रतिलेखना नहीं करना, संकीर्ण स्थान में मल मूत्र परठने, प्रायश्चित्त वहन करने वाले के साथ भिक्षा जाने आदि का निषेध किया है। इनका उल्लंघन करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त बतलाया है। पाँचवाँ उद्देशक - इस उद्देशक से वृक्ष के मूल में बैठकर कायोत्सर्ग करने, खड़ा रहने, आहार करने, लघुशंका या शौच आदि करने, स्वाध्याय करने आदि का निषेध किया है। इसके अलावा अपनी चद्दरादि गृहस्थ से सिलवाने, नीम आदि के पत्तों को अचित्त पानी से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004200
Book TitleNishith Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy